Taraweeh ki dua
Taraweeh Ki Dua – अस्सलामु अलैकुम दोस्तों, आज हम तरावीह की दुआ Hindi, English, Arabic, Urdu के साथ देखेंगे |
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
” सुब्हा-नल मलिकुल कुद्दूस सुब्हान जिल मुल्कि वल म-ल कूत सुब्हा- न ज़िल इज्जती वल अ-ज़-मति वल-हैबति वल कुदरति वल-किब्रियाइ वल-ज-ब-रुत सुब्हा-नल-मलिकिल हैय्यिल्लज़ी ला यनामु व ला यमूत सुब्बुहुन कुद्दूसुन रब्बुना न रब्बुल मलाइकति वरूह अल्लाहुम्मा अजिरना मिनन्नारि या मुजीरु या मुजीरु या मुजीरू बीरहमतीका या अर्रहमरराहिमीन “
سُبْحَانَ ذِی الْمُلْکِ وَالْمَلَکُوْتِ سُبْحَانَ ذِی الْعِزَّةِ وَالْعَظَمَةِ وَالْهَيْبَةِ وَالْقُدْرَةِ وَالْکِبْرِيَآئِ وَالْجَبَرُوْتِ ط سُبْحَانَ الْمَلِکِ الْحَيِ الَّذِی لَا يَنَامُ وَلَا يَمُوْتُ سُبُّوحٌ قُدُّوْسٌ رَبُّنَا وَرَبُّ الْمَلَائِکَةِ وَالرُّوْحِ ط اَللّٰهُمَّ اَجِرْنَا مِنَ النَّارِ يَا مُجِيْرُ يَا مُجِيْرُ يَا مُجِيْر۔
” Subha-nal Malikul Quddus Subhan zil mulki wal malakoot Subha-n zil Izzati wal-Azmat, wal-Haibati wal-Qudrati wal-Kibriyai wal-Jabaroot Subha-nal-Malikil Hayyillazi la yanaamu wa la yamoot Subboohun Quddoosun Rabbuna wa Rabbul Malaikati war-Ruh Allahumma ajirna minannar, ya Mujeeru, ya Mujeeru, ya Mujeeru Birahmatika ya Arhamarrahimeen “
tarabi ki dua in hindi
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
” सुब्हा-नल मलिकुल कुद्दूस सुब्हान जिल मुल्कि वल म-ल कूत सुब्हा- न ज़िल इज्जती वल अ-ज़-मति वल-हैबति वल कुदरति वल-किब्रियाइ वल-ज-ब-रुत सुब्हा-नल-मलिकिल हैय्यिल्लज़ी ला यनामु व ला यमूत सुब्बुहुन कुद्दूसुन रब्बुना न रब्बुल मलाइकति वरूह अल्लाहुम्मा अजिरना मिनन्नारि या मुजीरु या मुजीरु या मुजीरू बीरहमतीका या अर्रहमरराहिमीन “
tarabi ki dua in English
Bismillāhir-raḥmānir-raḥīm
” Subha-nal Malikul Quddus Subhan zil mulki wal malakoot Subha-n zil Izzati wal-Azmat, wal-Haibati wal-Qudrati wal-Kibriyai wal-Jabaroot Subha-nal-Malikil Hayyillazi la yanaamu wa la yamoot Subboohun Quddoosun Rabbuna wa Rabbul Malaikati war-Ruh Allahumma ajirna minannar, ya Mujeeru, ya Mujeeru, ya Mujeeru Birahmatika ya Arhamarrahimeen “
taraweeh ki dua In Urdu
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيم
आप यहाँ तरावीह के मसाइल भी पढ़ सकते है
तरावीह वह बीस रकअत सुन्नते मुअक्किदा नमाज़ें हैं जो रमज़ान शरीफ में पढ़ी जाती हैं। ईशा की फर्ज़ के बाद हर रात में।
मसला : तरावीह का वक़्त ईशा के फर्ज़ पढ़ने के बाद से लेकर सुबह सादिक के निकलने तक है।
मसला : तरावीह में जमाअत सुन्नत किफाया है कि अगर मस्जिद के सब लोगों ने छोड़ दी तो सब गुनाहगार हुए और अगर किसी एक ने घर में तंहा पढ़ ली तो गुनाहगार नहीं।
मसला : मुस्तहब है कि तिहाई रात तक ताख़ीर करें और अगर आधी रात के बाद पढ़ें तो भी कराहत नहीं।
मसला : तरावीह जिस तरह मर्दों के लिये सुन्नत मुअक्किदा है उसी तरह औरतों के लिये भी सुन्नतें मुअक्किदा है इसका छोड़ना जायज़ नहीं।
मसला : तरावीह की बीस रकअतें दो दो रकअत करके दस सलाम से पढ़ें। इसमें हर चार रकअत पढ़ लेने के बाद इतनी देर तक आराम लेने के लिये बैठना मुस्तहब है जितनी देर में चार रकअतें पढ़ी हैं इस आराम करने के लिये बैठने को तरवीहा कहते हैं।
मसला : तरावीह के ख़त्म पर पांचवा तरवीहा भी मुस्तहब है अगर लोगों पर पांचवा तरवीहा गिरां हो तो न किया जाये।
मसला : तरवीहा में इख़्तेयार है कि चुप बैठा रहे या कुछ कलिमा व तस्बीह व कुरआन शरीफ दुरूद शरीफ पढ़ता रहे और तंहा तंहा नफ़्ल भी पढ़ सकता है जमाअत से मकरूह है।
मसला : जिसने ईशा की फर्ज़ नमाज़ नहीं पढ़ी वह न तरावीह पढ़ सकता है न वित्र जब तक फर्ज़ न अदा कर ले।
मसला : जिसने ईशा की फर्ज़ नमाज़ तंहा पढ़ी और तरावीह जमाअत से तो वह वित्र तंहा पढ़े।
मसला : अगर ईशा की फ़र्ज़ नमाज़ जमाअत से पढ़ी और तरावीह तंहा पढी तो वित्र की जमाअत में शरीक हो सकता है।
मसला : जिसकी कुछ रकअतें तरावीह की बाकी हर गई कि इमाम वित्र के लिये खड़ा हो गया तो इमाम के साथ वित्र पढ़ ले फिर बाकी अदा करे जबकि फर्ज़ जमाअत से पढ़ चुका हो तब और यह अफज़ल है और अगर तरावीह पूरी करके वित्र तहा पढ़े तो भी जायज है।
मसला : लोगों ने तरावीह पढ़ ली अब दोबारा पढ़ना चाहते हैं तो तंहा तहा पढ़ सकते हैं जमाअत की इजाज़त नहीं। एक इमाम दो मस्जिदों में तरावीह पढ़ाता है अगर दोनों में पूरी पढ़ाये तो नाजायज़ है और अगर मुक्तदी ने दोनों मस्जिदों में पूरी पढ़ी तो हर्ज नहीं मगर दूसरी में वित्र पढ़ना जायज़ नहीं जबकि पहली में पढ़ चुका हो।
मसला : तरावीह मस्जिद में जमाअत से पढ़ना अफज़ल है अगर घर में जमाअत से पढ़ी तो जमाअत छोड़ने का गुनाह न हुआ मगर वह सवाब न मिलेगा जो मस्जिद में पढ़ने का था।
मसला :नाबालिग के पीछे बालिगों की तरावीह न होगी।
मसला : महीने भर की कुल तरावीह में एक बार कुरआन ख़त्म करना सुन्नते मुअक्किदा है और दो मर्तबा फ़ज़ीलत और तीन ख़त्म अफ़ज़ल । लोगों की सुस्ती की वजह से ख़त्म को न छोड़े।
मसला : हाफ़िज़ को उजरत देकर तरावीह पढ़वाना नाजायज़ है। देने वाला और लेने वाला दोनों गुनाहगार हैं। उजरत सिर्फ यही नहीं है कि पेश्तर से मुक्रर कर लें कि यह लेंगे यह देंगे बल्कि अगर मालूम है कि यहां कुछ मिलता है अगरचे उससे तय न हुआ हो तो यह भी नाजायज़ है कि अलमारूफ कल मशरूत। हां अगर यह कह दे कि कुछ नहीं दूंगा या नहीं लूंगा फिर पढ़े और लोग हाफिज़ को कुछ बतौरे ख़िदमत के दें तो इसमें कुछ हर्ज नहीं।
शबीना : यानी एक रात में पूरा कुरआन मजीद तरावीह में ख़त्म करना जैसा कि हमारे ज़माने में रिवाज है कि हाफ़िज़ इस कदर जल्द पढ़ते हैं कि अलफाज़ तक समझ में नहीं आते। हरूफ का मखारिज से अदा करने का तो जिक्र ही क्या सुनने वालों की भी यह हालत कि कोई बैठा है तो कोई लेटा कोई सोता है तो कोई ऊंघता। जहां इमाम ने रुकू की तकबीर कही झट नीयत बांध रुकू में जा मिले ऐसा शबीना नाजायज़ है। अगर हाफिज़ अपनी तेजी व रवानी की नाम आवरी के लिये ऐसा करे तो रिया का गुनाह अलग।