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Iftar Ki Dua | Roza Kholne Ki Dua | Iftar Dua

Iftar Ki Dua | Roza Kholne Ki Dua | Iftar Dua

Iftar Ki Dua / roza kholne ki dua

Roza Kholne से पहले Iftar Ki Dua हर रोज़ेदार को पड़ना चाहिए। निचे दिया गया इफ्तार की दुआ रोज़ा खोलने से पहले पढ़े।

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيم

” अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुम्तु व बिका आमंतु व अलैका तवक्कल्तु व अला रिज़्क़िका अफ्तरतु “

اَللّٰهُمَّ اِنِّی لَکَ صُمْتُ وَبِکَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّلْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ

“Allahumma, inni laka sumtu, wa bika aamantu, wa ‘alaika tawakkaltu, wa ‘ala rizq-ika-aftartu.”

Iftar Ki dua In hIndi

roza kholne ki dua / iftar ki dua
Safar ki Dua In Hindi

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुम्तु व बिका आमंतु व अलैका तवक्कल्तु व अला रिज़्क़िका अफ्तरतु “

तर्जुमा – अय अल्लाह मैं ने तेरे ही लिए रोजा रखा और तेरे ही दिए रिज़्क पर रोजा खोला।

Roza Kholne Ki dua In English

roza kholne ki dua / iftar ki dua
Safar ki Dua In English

Bismillāhir-raḥmānir-raḥīm

“Allahumma, inni laka sumtu, wa bika aamantu, wa ‘alaika tawakkaltu, wa ‘ala rizq-ika-aftartu.”

Tarjuma – “O Allah, I fasted for You, and I believe in You, and I put my trust in You, and with Your sustenance, I break my fast.”

Iftar Ki dua In Urdu

roza kholne ki dua / iftar ki dua
Safar ki Dua In Urdu

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيم

اَللّٰهُمَّ اِنِّی لَکَ صُمْتُ وَبِکَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّلْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ

अपने इल्म में इज़ाफ़े के लिए आप रोज़े के मसाइल पढ़ सकते है

मसला : खाने या पीने या जिमाअ करने से रोजा टूट जाता है जबकि रोज़ादार होना याद हो और अगर रोजदार होना याद न रहा और भूलकर खा लिया या पी लिया या जिमान कर लिया तो रोजा न गया।

मसला हुक्का, सिगरेट, बीडी, चुरूट, सिगार पीने से रोजा टूट जाता है।

मसला: पान या तंबाकू, सुर्ती खाने से भी रोज़ा टूट जाता है अगरचे पीक थुक दी हो।

मसला: चीनी, गुड वगैरह ऐसी चीजें जो मुंह में रखने से घुल जाती हैं मुंह में रखी और थूक निगल गया तो रोज़ा टूट गया।

मसला : दांतों में कोई चीज चने बराबर या इससे ज़्यादा थी उसे खा गया या कम ही थी मगर मुंह से निकाल कर फिर खा ली तो रोज़ा टूट गया।

मसला: दांतों से खून निकलकर हलक से नीचे उतरा और खून चूक से ज्यादा या बराबर था या कम था मगर उसका मज़ा हलक में मालूम हुआ तो इन सब सूरतों में रोज़ा जाता रहा और अगर खून कम था और मज़ा भी मालूम न हुआ तो रोज़ा न गया।

मसला: हुकना (किसी दवा की बत्ती या पिचकारी पाखाने के मकाम पर चढ़ाना ताकि पाखाना आ जाये) लिया या नधुनों में दवा चढ़ाई या कान में तेल डाला या तेल चला गया तो रोज़ा टूट गया और अगर पानी कान में चला गया या डाला तो रोज़ा नहीं टूटा।

मसला: कुल्ली कर रहा था बिला कस्द पानी हलक से उतर गया या नाक में पानी चढ़ा रहा था पानी दिमाग में चढ़ गया तो रोजा टूट गया लेकिन अगर रोजा होना भूल गया हो तो न टूटेगा।

मसला: सोते में पानी पी लिया या कुछ खा लिया या मुंह खोला था और पानी का कतरा या ओला हलक में चला गया तो रोज़ा टूट गया।

मसला: दूसरे का थूक निगल गया या अपना ही थूक हाथ पर लेकर निगल गया तो रोज़ा जाता रहा।

मसला: मुंह में रंगीन डोरा रखा जिससे थूक रंगीन हो गया फिर थूक निगल लिया तो रोज़ा टूट गया।

मसला : आंसू मुंह में चला गया और निगल लिया अगर बूंद दो बूंद है तो रोजा न गया और अगर ज़्यादा था कि उसकी नमकीनी पूरे मुंह में मालूम हुई तो रोज़ा टूट गया पसीना का भी यही हुक्म है।

मसला : मर्द ने औरत का बोसा लिया या छुआ या मुबाशरत की या गले लगाया और इंजाल हो गया तो रोज़ा जाता रहा और अगर औरत ने मर्द को छुआ और मर्द को इंजाल हो गया तो रोज़ा न टूटा। औरत को कपड़े के ऊपर से छुआ और कपड़ा इतना मोटा है कि बदन की गर्मी मालूम न हुई तो रोज़ा न टूटा अगरचे इंजाल हो गया हो।
मसला : मुबालगा के साथ इस्तिन्जा किया यहां तक कि हुकना रखने की जगह तक पानी पहुंच गया तो रोज़ा टूट गया और इतन मुबालगा चाहिये भी नहीं कि इससे सख़्त बीमारी का अंदेशा है। (दुर्रे मुख़्तार व बहारे शरीअत)

मसला : मर्द ने पेशाब की सुराख में पानी या तेल डाला तो रोज़ा न टूटा चाहे मसाना तक पहुंच गया हो और अगर औरत ने शर्मगाह में तेल या पानी टपकाया तो रोज़ा टूट गया। (आलमगीरी व बहारे शरीअत)

मसला : औरत ने पेशाब के मकाम में रुई या कपड़ा रखा और बिल्कुल बाहर न रहा तो रोज़ा टूट गया और सूखी उंगली किसी ने पाखाना के मकाम में रखी या औरत ने शर्मगाह में रखी तो रोज़ा न गया और अगर उंगली भीगी थी या उस पर कुछ लगा था तो रोज़ा टूट गया जबकि पाखाना के मकाम में उस जगह रखी हो जहां अमल देते वक़्त हुक‌ना का सिरा रखते हैं।

मसला : सदन मुंह भर कै की और रोज़ादार होना याद है तो रोज़ा टूट गया और अगर मुंह भर से कम की तो रोज़ा न टूटा।

मसला : बे इख़्तेयार कै हो गयी तो थोड़ी हो या ज़्यादा रोज़ा न टूटा।

मसला : बे इख़्तेयार कै हुई और खुद-ब-खुद अंदर लौट गई तो रोज़ा न टूटा चाहे थोड़ी हो या ज़्यादा रोज़ा याद हो या न हो।

कै के यह अहकाम उस वक़्त हैं कि कै में खाना आये या सफा (पित्त) या खून और अगर बलगम आया तो मुतलकन रोज़ा न टूटेगा।

मसला : रमज़ान में बिला उज़्र जो शख़्स ऐलानिया खाये पिये तो हुक्म है कि उसे कत्ल किया जाये।

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