< Qabar Par Mitti Dene Ki Dua | कब्र में मिट्टी डालने की दुआ
Qabar Par Mitti Dene Ki Dua | कब्र में मिट्टी डालने की दुआ

Qabar Par Mitti Dene Ki Dua | कब्र में मिट्टी डालने की दुआ

Qabar Par Mitti Dene Ki Dua In Hindi

Qabar Par Mitti Dene Ki Dua In Hindi, English, Arabic| क़ब्र में मिट्टी डालने की “दुआ” 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

पहली बार– मिन्हा खलाकनकुम

दुसरी बार – वफीहा नुईदुकुम

तीसरी बार – व मिनहा नुखरिजुकूम तारतन उखरा

तर्जुमा – हमने तुमको इसी जमीन से पैदा किया, और इसी में हम तुमको मौत के बाद लेजाएगें, और क़यामत के रोज फिर इसी से हम तुमको निकालेंगे 

Qabar Par Mitti Dene Ki Dua | कब्र में मिट्टी डालने की दुआ
Qabar Par Mitti Dene Ki Dua​

Qabar Par Mitti Dene Ki Dua​ In Arabic

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

1) مِنْهَا خَلَقْتُكُمْ  

2) وَفِيهَا نُعِيدُكُمْ  

3) وَمِنْهَانُخْرِجُكُمْ تَارَةً أُخْرَى

Qabar Par Mitti Dene Ki Dua​ In English

Bismillāhir-raḥmānir-raḥīm

 Pahli martaba – minha khalaqnakum  

Dusri martaba – wafiha nuidukum  

Teesri martaba – waminha nukhrijukum taratan ‘ukhra 

आप मौत और कब्र का ब्यान भी पढ़ सकते हैं

किस वक़्त ईमान लाना बेकार है?

हर शख्स की उम्र मुक्रर है न उससे घट सकती है न बढ़ सकती है। जब ज़िन्दगी का वक़्त पूरा हो जाता है तो हज़रत इज़ाईल अलैहिस्सलाम रूह निकालने के लिये आते हैं उस वक़्त मरने वाले को दायें बायें जहां तक नज़र जाती है फरिश्ते ही फरिश्ते दिखाई देते हैं। मुसलमान के पास रहमत के फरिश्ते होते हैं और काफिर के पास अज़ाब के। उस वक़्त काफिर को भी इस्लाम के सच्चे होने का यकीन हो जाता है। लेकिन उस वक़्त का ईमान मोतबर नहीं क्योंकि ईमान तो अल्लाह व रसूल की बताई बातों पर बे देखे यकीन करने का नाम है। और अब तो फरिश्तों को देखकर ईमान लाता है इसलिये ऐसे ईमान लाने से मुसलमान न होगा। मुसलमान की रूह आसानी से निकाली जाती है और उसको रहमत के फरिश्ते इज़्ज़त के साथ ले जाते हैं और काफिर की रूह बड़ी सख्ती से निकाली जाती है और उसको अज़ाब के फरिश्ते बड़ी ज़िल्लत से ले जाते हैं। मरने के बाद रूह किसी दूसरे बदन में जाकर फिर पैदा नहीं होती बल्कि क़यामत आने तक आलमे बरज़ख (दुनिया और आखरत के दर्मियान एक और आलम है जिसको बरजख कहते हैं) मरने के बाद से कयामत आने तक तमाम इंसानों और जिन्नों को हस्बे मरातिब उसमें रहना होता है यह आलम इस दुनिया से बहुत बड़ा है दुनिया के साथ बरज़ख को वही निस्बत है जो मां के पेट के साथ दुनिया को) यह ख़्याल कि रूह किसी दूसरे बदन में चली जाती है चाहे आदमी का बदन हो या जानवर का या पेड़ पौधों में, यह गलत है इसका मानना कुफ्र है इसी को आवागवन और तनासुख कहते हैं।

मौत क्या है?

मौत यह है कि रूह बदन से निकल जाये लेकिन निकल कर रूह मिट नहीं जाती बल्कि आलमे बरज़ख में रहती है।

मरने के बाद रूह कहां रहती है?

ईमान व अमल के एतेबार से हर रूह के लिये अलग जगह मुक्रर है। कयामत आने तक वहीं रहेगी। किसी की जगह अर्श के नीचे है और किसी की आला इल्लीईन में और किसी की चाहे ज़मज़म शरीफ (यानी ज़मज़म के कुंए) में। किसी की जगह उसकी कब्र पर है और काफिरों की रूह कैद रहती है किसी की चाहे बरहूत में किसी की सिज्जीईन में किसी की उसके मरघट या कब्र पर ।

क्या रूह भी मरती है?

बहरहाल रूह मरती मिटती नहीं बल्कि बाकी रहती है। और जिस हाल में भी हो और जहां कहीं भी हो अपने बदन से एक तरह का लगाव रखती है। बदन की तकलीफ से उसे भी तकलीफ होती है और बदन के आराम से आराम पाती है जो कोई कब्र पर आये उसे देखती पहचानती है उसकी बात सुनती है और मुसलमान की रूह की निस्बत तो हदीस शरीफ में आया है कि जब मुसलमान मर जाता है तो उसकी राह खोल दी जाती है जहां चाहे जाये। हज़रत शाह अब्दुले अज़ीज़ साहब लिखते हैं कि रूह के लिये कोई जगह दूर या नज़दीक नहीं बल्कि सब जगह बराबर है।

रूह कि मौत और बाज़ अहवाल

जो यह माने कि मरने के बाद रूह मिट जाती है वह बदमज़हब है, मुर्दा कलाम भी करता है। उसकी बोली अवाम जिन्न और इंसानों के सिवा हैवानात वगैरह सुनते भी हैं।

कब्र का दबाना

दफ्न के बाद कब्र मुर्दे को दबाती है मोमिन को इस तरह जैसे मां बच्चे को और काफिर को इस तरह कि इधर की पसलियां उधर हो जाती हैं। जब लोग दफन करके लौटते हैं मुर्दा उनके जूतों की आवाज़ सुनता है।

मुन्किर नकीर कैसे हैं, कब आते हैं, और क्या सवाल करते हैं?

उस वक़्त मुन्कर नकीर दो फरिश्ते ज़मीन चीरते हुए आते हैं। उनकी शक्ल बहुत डरावनी होती है उनका बदन काला, आंखें नीली और काली बहुत बड़ी बड़ी जिनसे आग की तरह लपट निकलती है उनके डरावने बाल सर से पांव तक उनके दांत बहुत बड़े बड़े जिनसे ज़मीन चीरते हुए आते हैं मुर्दे को झिंझोड़ते और झिड़क कर उठाते हैं और बहुत सख्ती के साथ बड़ी कड़ी आवाज़ से तीन सवाल करते हैं।

1. मन रब्बो क, यानी तेरा रब कौन है?

2. मा दीनो क, तेरा दीन क्या है?

३. मा कुनत तकूलो फी हाज़र रजुल इनके बारे में तू क्या कहता था।

मुर्दा अगर मुसलमान है तो पहले सवाल का यह जवाब देगा कि रब्बी यल्लाह मेरा रब अल्लाह है, और दूसरे का दीन इस्लाम, मेरा दीन इस्लाम है और तीसरे सवाल का जवाब यह देगा कि  रसूलुल्लाहि सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह अल्लाह के रसूल हैं अल्लाह की तरफ से इन पर रहमत नाजिल हो और सलाम। अब आसमान से यह आवाज़ आयेगी कि मेरे बंदे ने सच कहा इसके लिये जन्नत का बिछौना बिछाओ और जन्नत का कपड़ा पहनाओ और जन्नत का दरवाज़ा खोल दो, अब जन्नत की ठंडी हवा और खुश्बू आती रहेगी और जहां तक निगाह फैलेगी वहां तक कब्र चौड़ी चमकीली कर दी जायेगी और फरिश्ते कहेंगे सो जैसे दुल्हा सोता है यह नेक परहेज़गार मुसलमानों के लिये होगा, गुनाहगारों को उनके गुनाह के लायक अज़ाब भी होगा एक जमाना तक फिर बुजुर्गों की शफाअत से या ईसाले सवाब व दुआये मग्फिरत से या महज़ अल्लाह की मेहरबानी से यह अज़ाब उठ जायेगा और फिर चैन ही चैन होगा, और अगर मुर्दा काफ़िर है तो सवाल का जवाब न दे सकेगा और कहेगा हाह हाह ला अदरी, अफ़सोस मुझे तो कुछ मालूम नहीं, अब एक पुकारने वाला आसमान से पुकारेगा कि यह झूठा है इसके लिये आग का बिछौना बिछाओ और आग का कपड़ा पहनाओ और जहन्नम का एक दरवाज़ा खोल दो उसकी गर्मी और लपट पहुंचेगी और अज़ाब देने के लिये दो फरिश्ते मुर्कार होंगे जो बड़े बड़े हथौड़े से मारते रहेंगे और सांप बिच्छू भी काटते रहेंगे और कयामत तक तरह तरह के अज़ाब होते रहेंगे।

कब्र में किस किससे सवाल नहीं होता है?

तंबीह : हज़रात अंबिया अलैहिमुरसलाम से न कब्र में सवाल होगा न उन्हें कब्र दबाये और सवाल तो बाज़ उम्मतियों से भी न होगा जैसे जुमा और रमज़ान में मरने वाले मुसलमान। कब्र में आराम व तकलीफ का होना हक है।

अज़ाब व सवाब इंसान की किस चीज़ पर होता है और यह अज़ाब व सवाब बदन और रूह दोनों पर है। बदन के असली अज़्जा क्या क्या हैं और कहां हैं?

बदन अगरचे गल जायें, जल जायें खाक में मिल जायें मगर उसके असली अजज़ा क़यामत तक बाकी रहेंगे उन्हीं पर अज़ाब व सवाब होगा और उन्हीं पर क़यामत के दिन फिर बदन बनकर तैयार होगा, यह अजज़ा रीढ़ की हड्डी में कुछ ऐसे बारीक, बहुत ही छोटे छोटे होते हैं जो किसी खुर्द बीन से भी नहीं देखे जा सकते न उन्हें आग जला सकती है न ज़मीन गला सकती है यही बदन का बीज है इन्हीं अजजा के साथ अल्लाह तआला बदन के और हिस्सों को जमा कर देगा जो राख या मिट्टी होकर इधर उधर फैल गये, और फिर वही पहला जिस्म बन जायेगा और रूह उसी जिस्म में आकर कयामत के मैदान में आयेगी इसी का नाम हश्र है। अब इसी से यह भी मालूम हो गया कि क़यामत के दिन रूहें अपने पहले ही बदन में लौटाई जायेंगी न कि दूसरे में क्योंकि असली अज्ज़ा का बाकी रहना और ज़ायद में तगय्युर व तबद्दुल होना चीज़ को बदल नहीं देता बल्कि इस किस्म की तबदीलियों के बाद भी वह पहली चीज़ वही रहती है। देखो जब बच्चा पैदा होता है तो कितना बड़ा होता है और कैसा होता है और जवान होने तक इसमें कितनी तबदीलियां होती हैं। मगर हर ज़माना और हर हाल में रहता वही है दूसरा नहीं हो जाता। वह खुद भी यकीन रखता है कि दस पांच बरस पहले भी मैं ही था और अब भी मैं ही हूं और यह हमेशा और हर उम्र में हर शख़्स समझता है अपने लिये भी और दूसरों के लिये भी, मुर्दा अगर कब्र में न दफन किया जाये तो जहां पड़ा रह गया फेंक दिया गया, गर्ज़ कहीं हो उससे वहीं सवाल होगा और अज़ाब सवाब पहुंचेगा यहां तक कि जिसे शेर खा गया उससे शेर के पेट में सवाल होगा और अज़ाब सवाब भी वहीं होगा। कब्र के अज़ाब व सवाब का मुन्किर गुमराह है।

किन लोगों के बदन को मिट्टी नहीं खा सकती?किन लोगों के बदन को मिट्टी नहीं खा सकती?

मसला : नबी, वली, आलिमे दीन, शहीद, हाफ़िज़े कुरआन जो कुरआन पर अमल भी करता हो और जो मंसबे मुहब्बत पर फायज़ है और वह जिस्म जिसने कभी गुनाह न किया और वह जो हर वक़्त दुरूद शरीफ पढ़ता है उनके बदन को मिटटी नहीं खा सकती जो शख़्स अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम को यह कहे कि मर कर मिट्टी में मिल गये वह गुमराह बद्दीन ख़बीस मुर्तकिबे तौहीन है।

 

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