बर्तन छुपाने और सोने के वक़्त के आदाब
सरे शाम बच्चों के बाहर निकलने के बारे में हदीसः
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जब शाम हो जाये तो बच्चों को समेट लो, कि इस वक़्त शैतान मुन्तशिर होते हैं फिर जब एक घड़ी रात चली जाये अब उन्हें छोड़ दो और बिस्मिल्लाह कहकर मश्कों के दहाने बांधो और बिस्मिल्लाह पढ़कर बर्तनों को ढक दो, ढको नहीं तो यही करो कि उस पर कोई ऐसी चीज़ आड़ी करके रख दो और चिरागों को बुझा दो। और एक रिवायत में है कि बर्तन छिपा दो, और मश्कों के मुंह बंद कर दो और दरवाज़े भेड़ दो और बच्चों को समेट लो। शाम के वक़्त क्योंकि इस वक़्त जिन्न मुन्तशिर होते हैं। और उचक लेते हैं और सोते वक़्त चिराग बुझा लो कि कभी चुहा ही घसीट ले जाता है और घर जल जाता है। और एक रिवायत में है कि बर्तन छिपा दो और मशक का मुंह बांध दो और दरवाजे बंद कर दो और चिराग बुझा दो कि शैतान मशक को नहीं खोलेगे और न दरवाज़ा और बर्तन खोलेगा अगर कुछ न मिले तो बिस्मिल्लाह कहकर एक लकड़ी आड़ी करके रख दो।
साल में एक रात वबा उतरती हैः
और एक रिवायत में है कि साल में एक रात ऐसी होती है कि उमसे वबा उतरती है। जो बर्तन छिपा हुआ नहीं है या मशक का मुंह बंधा हुआ नहीं है अगर वहां से वह वबा गुज़रती है तो उसमें उतर जाती है। (बुखारी व मुस्लिम) और फरमाया जब आफताब डूब जाये तो जब तक ईशा की स्याही जाती न रहे अपने चौपायों और बच्चों को न छोड़ो क्योंकि इस वक़्त शैतान मुन्तशिर होते हैं। और फरमाया कि सोते वक़्त अपने घरों में आग मत छोड़ा करो, हज़रत अबू मूसा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कहते है कि महीना में एक मकान रात में जल गया। हुजूर ने फ़रमाया यह आग तुम्हरी दुश्मन है जब सोया करो बुझा दिया करो। (बुखारी)
जब रात में कुत्ते भौंके गधे चीखें तो क्या पढ़ेः
और फरमाया कि जब रात में कुत्ते भौंकना और गधे की आवाज़ सुनो तो आऊजू बिल्लाह मिनश शैतानिर्ररजीम पढ़ो कि वह उस चीज़ को देखते हैं जिसको तुम नहीं देखते। और जब बंद हो जाये तो घर से कम निकलो कि अल्लाह अज्ज़ व जल रात में अपनी मख़लूकात में से जिसको चाहता है ज़मीन पर मुन्तशिर करता है।
बैठने और सोने और चलने के आदाबः
कुरआन शरीफ में है (लुकमान के बेटे से कहा) किसी से बात करने में अपना रुखसार टेढ़ा न कर और ज़मीन पर इतराता न चल बेशक अल्लाह को पसंद नहीं है कोई इतराने वाला और, फ़ख्र करने वाला और मियाना चाल चल और अपनी आवाज़ पस्त कर बेशक सब आवाज़ों में बुरी गधे की आवाज़ है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ऐसा न करे कि एक शख्स दूसरे को उसकी जगह से उठाकर खुद बैठ जाये यह लेकिन हट जाया करो और जगह कुशादा कर दिया करो यानी बैठने वालों को चाहिये कि आने वाले के लिये सरक जाये और जगह दे दे कि वह भी बैठ जाये या यह कि आने वाला किसी को न उठाये बल्कि उनसे कहे कि सरक जाओ मुझे भी जगह देदो, और फ़रमाया जो शख़्स अपनी जगह से उठ कर गया फिर आ गया तो उस जगह का वही हकदार है यानी जबकि जल्द आ जाये।
किस तरह बैठना चाहिये?
हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मस्जिद में बैठते दोनों हाथों से इख़्तिबा करते, इख़्तिबा की सूरत यह है कि आदमी सुरीन को ज़मीन पर रख दे और घुटने खड़े करके दोनों हाथों से घेर ले और एक हाथ से दूसरे को पकड़ ले इस किस्म का बैठना तवाज़ो व इन्किसार में शुमार होता है। हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब नामज फज्र पढ़ लेते चार जानू बैठे रहते यहां तक कि आफताब अच्छी तरह तुलू हो जाता और फरमाया जब कोई शख़्स साया में हो और साया सिमट गया, कुछ साया में हो गया कुछ धूप में तो वहां से उठ जाये। हज़रत उमर बिन शरीद के वालिद कहते हैं कि इस मैं इस तरह बैठा हुआ था कि बाएं हाथ को पीठ के पीछे कर लिया और दाहिने हाथ की हथेली की गद्दी पर टेक लगा ली, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे पास से गुज़रे और यह फ़रमाया क्या तुम उन लोगों की तरह बैठते हो जिनपर खुदा का ग़ज़ब है। और फ़रमाया चंद कलिमात हैं कि जो शख़्स मजलिस से फारिग होकर उनको तीन मर्तबा कह लेगा अल्लाह तआला उसके गुनाह मिटा देगा और जो शख़्स मजलिसे खैर व मजलिस ज़िक्र में इनको कहेगा तो अल्लाह तआला उस खैर पर मोहर कर देगा जिस तरह कोई शख़्स अंगूठी से मोहर करता है वह कलिमात यह है सुब्हा न क अल्लाहुम म व बिहम्दि क ला इला ह इल्ला अन त अस तग़फिरू क व अतूबु इलै क और फ़रमाया जो लोग देर तक किसी जगह बैठे और बगैर ज़िक्र अल्लाह व नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दुरूद पढ़े वहां से मुतफरिक हो गये, उन्होंने नुक्सान किया और अगर अल्लाह चाहे अजाब दे और चाहे तो बख़्स दे।
पाँव पर पाँव रखकर लेटने की कौन सी सूरत मना है ?
हज़रत जाबिर कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पावं पर पांव रखने से मना फरमाया है जबकि चित लेटा हो। हज़रत अबादा बिन तमीम अपने चचा से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मस्जिद में लेटे हुए मैंने देखा हुजूर ने एक पांव को दूसरे पर रखा था यह ब्यान जवाज के लिये है और इस सूरत में कि सतर खुलने का अंदेशा न हो, और पहली हदीस उस सूरत में है कि सतर खुलने का अंदेशा हो, मसलन आदमी तहबंद पहने हो और चित लेटकर एक पांव खड़ा करके उस पर दूसरे को रखे तो सतर खुलने का अंदेशा होता है और अगर पांव फैला कर एक को दूसरे पर रखे तो इस सूरत में खुलने का अंदेशा नहीं होता। हज़रत अबू ज़र रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि मैं पेट के बल लेटा हुआ था रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे पास से गुज़रे और पांव से ठोकर मारी और फ़रमाया ऐ जुनदुब (यह हज़रत अबू जर का नाम है) यह जहन्निमयों के लेटने का तरीका है यानी इस तरह काफिर लेटते हैं या यह कि जहन्नमी, जहन्नम में इस तरह लेटेंगे। हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस छत पर सोने से मना फ़रमाया है जिस पर रोक न हो। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो शख्स ऐसी छत पर रात में रहे जिस पर रोक नहीं यानी दीवार या मुढेर नहीं है उससे जिम्मा बरी है यानी अगर रात में छत से गिर जाये तो इसका ज़िम्मेदार वह खुद है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तहाई से मना फरमाया यानी इससे कि आदमी तंहा सोये। और फरमाया जब तुम्हारे सामने औरतें आ जायें तो उनके बीच से न गुज़रो बल्कि दाहिने या बायें का रास्ता ले लो।
मसला : कैलुला करना जायज़ बल्कि मुस्तहब है ग़ालिबन यह उन लोगों के लिये होगा जो शब्बेदारी करते हैं रात में नामजें पढ़ते ज़िक्र इलाही करते है या कुतुब बीनी या मुताला में मशगूल रहते हैं कि शब्बेदारी में जो थकान हुआ. कैलूला से दफा हो जायेगा।
किस तरह सोना मुस्तहब है?
मसला : दिन के इब्तेदाई हिस्सा में सोना या मरिब व ईशा के दर्मियान में सोना मकरूह है। सोने में मुस्तहब है कि बा-तहारत सोये और कुछ देर दाहिनी करवट पर दाहिने हाथ रुखसार के नीचे रखकर किब्ला रू सोये फिर उसके बाद बायें करवट पर और सोते वक़्त कब्र में सोने को याद करे कि वहां तंहा सोना होगा सिवा अपने आमाल के कोई साथ न होगा।
सुबह उठकर पढ़ने की दुआः
सोते वक़्त यादे खुदा में मशगूल हो तहलील तस्बीह व तहमीद पढ़े यहां तक कि सो जाये कि जिस हालत पर इंसान सोता है उसी पर उठता है और जिस हालत पर मरता है कयामत के दिन उसी पर उठेगा सोकर सुबह से पहले ही उठ जाये और उठते ही यादे खुदा करे यह पढ़े। अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अह्या ना बञ् द मा अमा तना व इलैहिन्नुशूर उसी वक़्त इसका पक्का इरादा करे कि परहेज़गारी व तक़वा करेगा किसी को सतायेगा नहीं।
ईशा के बाद बातें करने के अहकामः
मसला : बादे नमाज़े ईशा बातें करने की तीन सूरते हैं अव्वल इल्मी गुफ्तगू किसी से मसला पूछना या उसका जवाब देना या उसकी तहकीक व तफ्तीश करना, इस किस्म की गुफ्तगू सोने से अफज़ल है दोम झूठे किस्से कहानी मसखरा पन और हंसी मज़ाक की बातें करना यह मकरूह है। सोम मवानेसत की बातचीत करना जैसे मियां-बीवी में या मेहमान से उसके उन्स के लिये कलाम करना यह जायज़ है इसी किस्म की बातें करे तो आख़िर में ज़िक्रे इलाही में मशगूल हो जाये और तस्बीह व इस्तिम्फार पर कलाम का खात्मा होना चाहिये।
मसला : दो मर्द नंगे एक ही कपड़े को ओढ़कर लेटे यह नाजायज़ है, अगरचे बिछौना के एक किनारे पर एक लेटा हो और दूसरे किनारा पर दूसरा हो। इसी तरह दो औरतें का नंगे होकर एक कपड़े को ओढ़कर लेटना भी नाजायज़ है हदीस में इसकी मुमानियत आयी है।
किस उम्र में लड़कों को अलग सुलाना चाहिये?
मसला : जब लड़के और लड़की की उम्र दस साल हो जाये तो उनको अलग सुलाना चाहिये यानी लड़का जब इतना बड़ा हो जाये तो अपनी बहन या मां या किसी औरत के साथ न सोये। सिर्फ अपनी ज़ौजा या बांदी के साथ सो सकता है बल्कि उस उम्र का लड़का उतने बड़े लड़कों या मर्दो के साथ भी न सोये।
मसला : मियां बीवी जब एक चारपाई पर सोयें तो दस बरस के बच्चे को अपने साथ न सुलायें लड़का जब हद्दे शहवत को पहुंच जाये तो वह मर्द के हुक्म में है।
मसला : रास्ता छोड़कर किसी की ज़मीन में चलने का हक नहीं और अगर
वहां रास्ता नहीं है तो चल सकता है मगर जबकि मालिके ज़मीन मना करे तो नहीं चल सकता, यह हुक्म एक शख्स के मुताल्लिक है और जो बहुत से लोग हों तो जब तक मालिके ज़मीन राज़ी न हो नहीं चलना चाहिये, रास्ते में पानी है उसके किनारे किसी की ज़मीन है ऐसी सूरत में उस ज़मीन में चल सकता है, बाज़ मर्तबा खेत बोया होता है ज़ाहिर है उसमें चलना काश्तकार के नुक्सान का सबब है ऐसी सूरत में हरगिज़ उसमें चलना न चाहिये बल्कि बाज़ मर्तबा काश्तकार खेत के किनारे पर जहां से चलने का एहतेमाल होता है कांटे रख देता है यह साफ इसकी दलील है कि उसकी जानिब से चलने की मुमानियत है मगर उस पर बाज़ लोग तवज्जोह नहीं करते उनको जानना चाहिये कि इस सूरत में चलना मना है।