Naya Chand Dekhne ki Dua
चांद देख कर पढ़ने की दुआ हिंदी में । Naya Chand Dekhne ki Dua In Hindi Arabic & Engllish
” अल्लाहुम्मा अहिल लहू अलैना बिल अमनि वल इमानि वस सलामति वल इस्लामि वत तौफीकि लिमा तुहिब्बु व तरज़ा रब्बी व रब्बुकल लाह “
” Allaahumma ‘Ahillahu ‘Alaynaa Bil’yumni Wal’eemaani, Wassalaamati Wal-‘Islaam, Wattaufiki, Lima,Tuhhibu wa Tarda Rabbi wa Rabbukallah “
اللهُمَّ اهْلَهُ عَلَيْنَا بِالْيُمْنِ وَالْإِيْمَانِ وَالسَّلَامَةِ وَالْإِسْلَامِ وَالتَّوْفِيقِ لِمَا تَحِبُّ وَتَرْضَى رَبِّي وَرَبُّكَ الله
तर्जमा:– अय अल्लाह इस चांद को हम पर बरकत, ईमान, खैरियत और सलामती वाला कर दे । और (हमें) तौफीक दे उस (अमल) की जो तुझे पसंद और मरगूब हो । (अय चांद) मेरा और तेरा रब अल्लाह है ।
Naya Chand Dekhne ki Dua in hindi
” अल्लाहुम्मा अहिल लहू अलैना बिल अमनि वल इमानि वस सलामति वल इस्लामि वत तौफीकि लिमा तुहिब्बु व तरज़ा रब्बी व रब्बुकल लाह “
Naya Chand Dekhne ki Dua In English
” Allaahumma ‘Ahillahu ‘Alaynaa Bil’yumni Wal’eemaani, Wassalaamati Wal-‘Islaam, Wattaufiki, Lima,Tuhhibu wa Tarda Rabbi wa Rabbukallah “
Naya Chand Dekhne ki Dua In Arabic
اللهُمَّ اهْلَهُ عَلَيْنَا بِالْيُمْنِ وَالْإِيْمَانِ وَالسَّلَامَةِ وَالْإِسْلَامِ وَالتَّوْفِيقِ لِمَا تَحِبُّ وَتَرْضَى رَبِّي وَرَبُّكَ الله
चाँद की मसला आप इसमें पढ़ सकते हैं
चांद देखने का ब्यान
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ्रमाया चांद देखकर रोज़ा रखना शुरू करो और चांद देखकर इफ्तार (ईद) करो और अगर अब्र हो तो शाबान की गिनती तीस पूरी कर लो और फ्रमाया रोज़ा न रखो जब तक चांद न देख लो और इफ्तार (ईद) न करो जब तक चांद न देख लो और अगर अब्र हो तो मिकदार पूरी कर लो यानी तीस दिन।
किन महीनों का चांद देखना वाजिब है?
मसला :
पांच महीनों में चांद देखना वाजिब किफाया है।
- १. शाबान।
- २. रमज़ान ।
- ३. शव्वाल ।
- ४. जीकादा।
- ५. ज़िल हिज्जा।
मसला : शाबान की उन्तीस को शाम के वक़्त चांद देखें। दिखाई दे तो कल रोज़ा रखें वरना शाबान के तीस दिन पूरे करके रमज़ान का महीना शुरू करें।
मतलअ साफ न होने की सूरत में चांद का सबूतः
मसला : मतलअ साफ न होने की सूरत में यानी अब्र व गुबार में सिर्फ रमज़ान का सबूत एक मुसलमान आकिल, बालिग, मस्तूर या आदिल की गवाही से हो जाता है चाहे मर्द हो या औरत और रमज़ान के सिवा बाकी तमाम महीनों के चांद के लिये दो मर्द या एक मर्द और दो औरतें गवाही दें और सब आदिल हों और यह लफ़्ज़ कहें कि गवाही देता हूं कि मैंने खुद चांद देखा तब चांद का सबूत होगा।
आदिल की तारीफः
आदिल होने के यह मायने हैं कि कबीरा गुनाहों से बचता हो और, सगीरा पर इसरार न करता हो और ऐसा काम न करता हो जो मुरव्वत के खिलाफ हो। मसलन बाज़ार में खाना।
मस्तूर की तारीफः
मस्तूर से यह मुराद है कि जिसका जाहिर हाल शरअ के मुताबिक है मगर बातीन का हाल मालूम नहीं।
मसला: जिस आदिल शख्स ने रमज़ान का चांद देखा उस पर वाजिब है कि उसी रात में शहादत अदा करे।
मसला: गांव में चांद देखा और वहां कोई शरई काज़ी व हाकिम नहीं जिसके पास गवाही दे तो गांव वालों को जमा करके शहादत्त अदा करें और अगर यह आदिल है तो लोगों पर रोज़ा रखना लाजिम है।
मसला: जब मतला साफ न हो तो ईद के चांद का सबूत आकिल बालिग आदिल दो मर्दों या एक मर्द व दो औरतों की शहादत से होगा।
मतल साफ होने की सूरत में चांद का सबूतः
मसला : अगर मतला साफ हो तो जब तक बहुत से लोग शहादत न दें चांद का सबूत नहीं हो सकता। (चाहे रमजान का हो या ईद का या और किसी महीने का) रहा यह कि इसके लिये कितने लोग होने चाहिये तो यह काजी की राय पर है जितने गवाहों से उसे गालिब गुमान हो जाये उतने की शहादत से चांद होने का हुक्म दे देगा लेकिन अगर शहर बाहर से या किसी ऊंची जगह से चांद देखना बयान करे तो एक मस्तूर का मी कौल सिर्फ रमजान के चांद में मान लिया जायेगा। मैं यह कहता हूं कि चांद देखने में लोगों की जो सुस्ती व लापरवाही का हाल है इसके एतेबार से तो मतला साफ होने की हालत में ईद के सिवा और चांदों में भी बजाए बहुत आदमियों के दो गवाहों की गवाही काफी होनी चाहिये।
चांद की गवाहीः
शहादत देने में यह कहना जरूरी है कि मैं गवाही देता हूं बगैर इस लफ़्ज़ के शहादत नहीं। मगर अबर में रमज़ान के चांद की गवाही में इतना भी काफी है कि मैंने अपनी आंख से इस रमज़ान का चांद आज या कल या फला दिन देखा है। अगर कुछ लोग आकर यह कहें कि फलां जगह चांद हुआ बल्कि शहादत मी दें कि फलां जगह चांद हुआ बल्कि अगर यह शहादत दें कि फलां फलां ने देखा बल्कि अगर यह शहादत दें कि फलां जगह के काजी ने रोजा या इफ्तार के लिये लोगों से कहा यह सब तरीके ना काफी है।
मसला: तंहा इमाम या काजी ने ईद का चांद देखा तो उन्हें ईद करना या ईद का हुक्म देना जायज नहीं।
मसला : किसी शहर में चांद हुआ और वहां से मुतअद्दिद जमआतें दूसरे शहर में आई और सबने खबर दी कि वहां फलां दिन चांद हुआ है और तमाम शहर में यह बात मश्हूर है और वहां के लोगों ने रुयत की बिना पर फलां दिन से रोज़े शुरू किये तो यहां वालों के लिये भी सबूत हो गया।
मसला : किसी ने तंहा रमज़ान का या ईद का चांद देखा और गवाही दी मगर काज़ी ने उसकी गवाही कबूल न की तो उस पर रोज़ा रखना वाजिब है अगर न रखा या तोड़ डाला तो कज़ा लाज़िम है।
मसला : अगर दिन में चांद दिखाई दिया दोपहर से पहले या दोपहर के बाद बहरहाल वह आने वाली रात का माना जायेगा यानी अब जो रात आयेगी उससे महीना शुरू होगा अगर तीसवीं रमज़ान के दिन में देखा तो यह दिन रमजान ही है सव्वाल का नहीं और रोज़ा पूरा करना फर्ज़ है और अगर शाबान की तीसवीं तारीख के दिन में देखा तो यह दिन शाबान का दिन है रमज़ान का नहीं लिहाज़ा आज का रोज़ा फ़र्ज़ नहीं।
मसला : एक जगह चांद हुआ तो वह सिर्फ वहीं के लिये नहीं बल्कि तमाम दुनिया के लिये है मगर दूसरी जगह के लिये इसका हुक्म उस वक़्त है कि दूसरी जगह वालों पर उस दिन तारीख में चांद होना शरई सबूत से साबित हो जाये यानी चांद देखने की गवाही गुज़रे या काज़ी के हुक्म की गवाही गुज़रे या मुतअद्दिद जमाअतें वहां से आकर ख़बर दें कि फ्लां जगह चांद हुआ है और वहां लोगों ने रोज़ा रखा या ईद की।
मसला : तार, टेलीफोन, रेडियो से चांद देखना साबित नहीं हो सकता इसलिये
कि अगर इन्हें हर तरह सही मान भी लिया जाये जब भी यह महज़ एक ख़बर है शहादत नहीं और महज़ एक ख़बर से चांद का सबूत नहीं होता और इसी तरह बाज़ारी अफवाह से और जंतरियों और अखबारों में छपने से भी चांद होना साबित नहीं हो सकता।
मसला : हेलाल देखकर उसकी तरफ उंगली से इशारा करना मकरूह है अगरचे दूसरे को बताने के लिये हो।