Naya Kapde Pehenne Ki Dua
कपड़े पहनने की दुआ।। Naya Kapde Pehenne Ki Dua In Hindi English & Arabic
” अलहम्दु लिल्लाहिल लजी कसानी माओवारी बिही औरती व अत जम्मलू बिही फी हयाती “
” ALHAMDU LILLAAHIL-LAZEE KASAANEE MAA UWAAREE BIHEE AURATEE WA ATAJAMMALU BIHEE FEE HAYAATI! “
الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي كَسَانِي مَا أَوَارِي بِهِ عَوْرَتِي وَاتَجَمَّلُ بِهِ فِي حَيَاتِي –
तर्जमा:– सब खूबियों अल्लाह को जिसने मुझ को लिबास पहनाया कि मैं उस से सत्र छुपाता हूं और अपनी जिंदगी में उसके साथ जीनत करता हूं

Kapde Pehenne Ki Dua in hindi
” ” अलहम्दु लिल्लाहिल लजी कसानी माओवारी बिही औरती व अत जम्मलू बिही फी हयाती “ “
Kapde Pehenne Ki Dua In English
” ALHAMDU LILLAAHIL-LAZEE KASAANEE MAA UWAAREE BIHEE AURATEE WA ATAJAMMALU BIHEE FEE HAYAATI! “
Kapde Pehenne Ki Dua In Arabic
الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي كَسَانِي مَا أَوَارِي بِهِ عَوْرَتِي وَاتَجَمَّلُ بِهِ فِي حَيَاتِي –
अस्सलामु अलैकुम दोस्तों आप यहां पर कपड़ों के मसाइल भी पढ़ सकते हैं
लिबास का ब्यान
सबसे अच्छा कपड़ा कौन सा है?
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सबसे अच्छे वह कपड़े हैं जिन्हें पहनकर तुम खुदा की ज़ियारत कब्रों और मस्जिदों में करो सफेद है यानी सफेद कपड़ों में नमाज़ पढ़ना और मुर्दा दफनाना अच्छा है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कमीज़ की आसतीन गट्टे तक थी।
अमामा बांधने की फज़ीलतः
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अमामा बांधते तो दोनों शानों के दर्मियान शिमला लटकाते और फ़रमाया कि अमामा बांधना इख़्तेयार करो कि यह फ्रिश्तों का निशान है और उसको पीठ के पीछे लटका लो।
काफ़िर और मोमिन के अमामा का फर्कः
और फ़रमाया कि हमारे और मुशरिकीन के माबैन यह फर्क है कि हमारे अमामे टोपियों पर होते हैं हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा कहती हैं, हुजूर ने मुझसे फ़रमाया आयशा अगर तुम मुझसे मिलना चाहती हो तो दुनिया से इतने ही पर बस करो जितना सवार के पास तोशा होता है और मालदारों के पास बैठने से बचो और कपड़े को पुराना न समझो जब तक पेबन्द न लगा लो। हफ्सा बिन्त अब्दुर्रहमान, हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा के पास बारीक दुपट्टा ओढ़कर आई हज़रत आयशा ने उनका दुपट्टा फाड़ दिया और मोटा दुपट्टा दे दिया।
लिबासे शोहरत के मायने और उसकी मज़म्मतः
और फ़रमाया जो शख़्स शोहरत का कपड़ा पहने कयामत के दिन अल्लाह तआला उसको ज़िल्लत का कपड़ा पहनायेगा लिबासे शोहरत से मुराद यह है कि तकब्बुर के तौर पर अच्छे कपड़े पहने या जो शख़्स दरवेश न हो वह ऐसे कपड़े पहने जिससे लोग उसे दरवेश समझें या आलिम न हो और उलेमा के से कपड़े पहनकर लोगों के सामने अपना आलिम होना जताता है यानी कपड़े से मकसूद किसी खूबी का इजहार हो और फ़रमाया जो बावजूद कुदरत अच्छे कपडे पहना तवाज़ो के तौर पर छोड़ दे अल्लाह तआला उसको करामत का हुलिया पहनायेगा। हज़रत अबुल अहवस के वालिद कहते हैं मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ और मेरे कपड़े घटिया थे, हुजूर ने फ़रमाया क्या तुम्हारे पास माल नहीं मैंने अर्ज की हां है फ़रमाया किस किस्म का माल है, ऊंट, गाय, बकरियां, घोड़े, गुलाम फ़रमाया जब खुदा ने तुम्हें माल दिया है तो उसकी नेमत व करामत का असर तुम पर दिखाई देना चाहिये। और फ़रमाया सोना और रेशम मेरी उम्मत की औरतों के लिये हलाल है और मर्दों पर हराम। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दरिन्दा की खाल बिछाने से मना फरमाया तिर्मिज़ी में है हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने नया कपड़ा पहना और यह पढ़ा, अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी कसानी मा उ वरी बिही औ रती व अत जम मलु बिही फी हयाती फिर यह कहा कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है कि जो शख़्स नया कपड़ा पहनते वक़्त यह पढ़े और पुराने कपड़े को सदका कर दे वह ज़िन्दगी में और मरने के बाद अल्लाह तआला के कनफ व हिफ़्ज़ व सतर में रहेगा, तीनों अलफाज़ के एक ही मायने हैं यानी अल्लाह तआला उसका हाफिज़ व निगहबान है और फ़रमाया जो शख़्स जिस कौम से तशब्बुह करे वह उन्हीं में से है।
लिबास व आदात में मशाबेहत का कायदा और हुक्मः
यह हदीस एक असल कुल्ली है कि लिबास व आदात व अतवार मे किन लोगों से मुशाबेहत करनी चाहिये और किन से नहीं करनी चाहिये, कुफ्फार व फुस्साक व फुज्जार से मुशाबेहत बुरी है और अहले सलाह व तक्वा की मशाबेहत बहुत अच्छी है फिर इस तशब्बुह के भी दरजात हैं और इन्हीं के एतेबार से अहकाम भी मुख्तलिफ हैं, कुफ्फार व फुस्साक से तशब्बुह का अदना मर्तबा कराहियत है मुसलमान अपने को काफिरों और फासिकों से मुमताज़ रखे ताकि पहचाना जा सके और गैर मुस्लिम का शुबह उस पर न हो। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने औरतों पर लानत की जो मर्दों से तशब्बुह करें और उन मर्दों पर जो औरतों से तशब्बुह करें। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस मर्द पर लानत की जो औरत का लिबास पहनता है और उस औरत पर लानत की जो मर्दाना लिबास पहनती है और फ़रमाया कि न मैं सुर्ख ज़ीन पोश पर सवार होता हूं और न कुसुम का रंगा हुआ कपड़ा पहनता हूं और न वह कमीज़ पहनता हूं जिसमें रेशम का कफ लगा हो यानी चार अंगुल से जायद सुन लो मर्दों की खुश्बू वह जिसमें रंग हो बू न हो, यानी मर्दो में खुश्बू मकसूद होती है उसका रंग नुमाया न होना चाहिये कि बदन और कपड़े रंगीन हो जायें और औरतें हल्की खुश्बू इस्तेमाल करें कि यहां जीनत मकसूद होती है और यह रंगीन खुश्बू मसलन खलूक से हासिल होती है नीज़ खुश्बू से ख़्वाह मख्वाह लोगों की निगाहें उठेंगी। बुखारी और मुस्लिम में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बिछौना जिस पर आराम फरमाते थे चमड़े का था जिसमें खजूर की छाल भरी हुई थी। मुस्लिम की एक रिवायत में है कि हुजूर का तकिया चमड़े का था जिसमें खजूर की छाल भरी थी।
कितना कपड़ा पहनना फर्ज़ है?
मसला : इतना लिबास जिससे सतरे औरत हो जाये और गर्मी, सर्दी की
तकलीफ से बचे फर्ज़ है और इससे ज़्यादा जिससे ज़ीनत मकसूद हो और यह की जब कि अल्लाह ने दिया है तो उसकी नेमत का इजहार किया जाये यह मुस्तहब है, खास मौका पर मसलन ईद या जुमा के दिन उमदा कपड़े पहनना मुबाह है इस क्रिम के कपड़े रोज़ाना न पहने क्योंकि हो सकता है कि इतराने लगे और गरीबों को जिसके पास ऐसे कपड़े नहीं हैं नज़रे हिकारत से देखे लिहाजा इससे बचना ही चाहिये और तकब्बुर के तौर पर जो लिबास हो वह ममनू है तकब्बुर है या नहीं इसकी शिनाख्त यूं करे कि उन कपड़ों के पहनने से पहले अपनी जो हालत पाता था अगर पहनने के बाद भी वही हालत है तो मालूम हुआ कि इन कपड़ों से तकब्बुर पैदा नहीं हुआ अगर वह हालत अब बाकी नहीं रही तो तकब्बुर आ गया लिहाज़ा ऐसे कपड़े से बचे कि तकब्बुर बुरी सिफ्त है।
कपड़ा किस तरह का होना चाहिये?
मसला : बेहतर यह है कि ऊनी या सूती या कतान के कपड़े बनवाये जायें जो सुन्नत के मुवाफिक हों न निहायत आला दर्जा के हो न बहुत घटिया बल्कि मुतवस्सित क्रिस्म के हों कि जिस तरह बहुत आला दर्जा के कपड़ों से नुमूद होती है, बहुत घटिया कपड़े पहनने से भी नुमाईश होती है लोगों की नज़रें उठती है समझते हैं कि यह कोई साहबे कमाल और तारिकुद्दुनिया शख़्स हैं। सफेद कपड़े बेहतर हैं कि हदीस में इसकी तारीफ आई है और स्याह कपड़े भी बेहतर हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फतहे मक्का के दिन जब मक्का मोअज़्ज़मा में तश्रीफ लाये तो सरे अकदस पर स्याह अमामा था सब्ज़ कपड़ों को बाज़ किताबों में सुन्नत लिखा है।
कुर्ते की आस्तीन कितनी हो और दामन कितना?
मसला : सुन्नत यह है कि दामन की लंबाई आधी पिंडली तक हो, और
आसतीन की लंबाई ज़्यादा से ज़्यादा उंगलियों के पोरों तक और चौड़ाई एक बालिश्त हो। इस ज़माना में बहुत से मुसलमान पायजामा की जगह जांघिया पहनने लगे हैं इसके नाजायज़ होने में क्या कलाम कि घुटने का खुला होना हराम है और बहुत से लोगों के कुर्ते की आसतीन कुहनी, के ऊपर होती है, यह भी खिलाफे सुन्नत है और यह दोनों कपड़े नसारा की तकलीद में पहने जाते है इस चीज़ ने इनकी बाहत में और इज़ाफा कर दिया, अल्लाह तआला मुसलमानों की आंखें खोले कि वह कुफ्फार की तकलीद और उनकी वज़अ कृतअ से बचें। हज़रत अमीरुल मोमिनीन फारूके आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का इरशाद है जो अपने लश्करियों के लिये भेजा था जिसमें बेश्तर हज़रात सहाबा किराम थे उसको मुसलमान पेशे नज़र रखें और अमल की कोशिश करें और वह इरशाद यह है। इय्याकुम वज़ियल अ आजिम अजमियों के भेष से बचो उन जैसी वज़अ कतअ न बना लेना।
रेशमी कपड़ों के मसायलः
मसला : रेशम के कपड़े मर्द के लिये हराम है बदन और कपड़ों के दर्मियान
कोई दूसरा कपड़ा हायल हो या न हो, दोनों सूरतों में हराम हैं और जंग के मौके पर भी निरे रेशम के कपड़े हराम हैं हां अगर ताना सूत हो और बाना रेशम तो लड़ाई के मौके पर पहनना जायज़ है और अगर ताना रेशम हो और बाना सूत हो तो हर शख़्स के लिये हर मौका पर जायज़ है मुजाहिद और गैर मुजाहिद दोनों पहन सकते हैं लड़ाई के मौके पर ऐसा कपड़ा पहनना जिसका बाना रेशम हो उस वक्त जायज़ है जबकि कपड़ा मोटा हो और अगर बारीक हो तो नाजायज़ है कि इसका जो फायदा था इस सूरत में हासिल न होगा।
मसला : ताना रेशम हो और बाना सूत मगर कपड़ा इस तरह बनाया गया है कि रेशम ही रेशम दिखाई देता है तो इसका पहनना मकरूह है। बाज़ किस्म की मखमल ऐसी होती है कि उसके रुएं रेशम के होते हैं उसके पहनने का भी यही हुक्म है इसकी टोपी और सदरी वगैरह न पहनी जाये।
मसला : रेशम के बिछौने पर बैठना, लेटना और उसका तकिया लगाना भी ममनू है अगरचे पहनने में बनिसबत इसके ज़्यादा बुराई है मगर दुर्रे मुख्तार में इसे मशहूर के खिलाफ बताया है और ज़ाहिर यही है कि यह जायज़ है। मसला : औरतों को रेशम पहनना जायज है अगरचे खालिस रेशम हो इसमें सूत की बिल्कुल आमेज़िश न हो।
मसला : मर्दों के कपड़ों में रेशम की गोट चार अंगुल तक ही जायज है इससे ज़्यादा नाजायज़, यानी इसकी चौड़ाई चार अंगुल तक हो लंबाई का शुमार नहीं, इसी तरह अगर कपड़े का किनारा रेशम से बना हो जैसा कि बाज़ अमामे, या चादरें या तहबंद के किनारे इस तरह के होते हैं इसका भी यही हुक्म है कि अगर चार अंगुल तक का किनारा हो तो जायज़ है वरना नहीं, यानी जबकि उस किनारा की बनावट भी रेशम की हो और अगर सूत की बनावट हो तो चार अंगुल से ज़्यादा ही जायज़ है, अमाम’ या चादर के पल्लू रेशम के बने हों तो चूंकि बाना रेशम का होना नाजायज़ है लिहाजा यह पल्लू भी चार अंगुल तक का ही होना चाहिये ज़्यादा न हो।
कितना रेशम मर्द इस्तेमाल कर सकता है?
मसला : आसतीन या गिरेबान या दामन के किनारा पर रेशम का काम हो तो वह भी चार अंगुल तक ही हो, सदरी या जुब्बा का साज़ रेशम का हो तो चार अंगुल तक का जायज़ है और रेशम की घुंडियां भी जायज़ है टोपी का तुर्रा भी चार अंगुल का जायज़ है पायजामे का नेफा भी चार अंगुल तक का जायज़ है अचकन या जुब्बा में शानों और पीठ पर रेशम के पान या कीरी चार अंगुल तक के जायज़ हैं यह हुक्म उस वक़्त है कि पान वगैरह मुग़र्क हों कि कपड़ा दिखाई न दे और अगर मुग्ररक न हों तो चार अंगुल से ज़्यादा भी जायज़ है।
मसला : टोपी में लैस लगायी गयी या अमामा में गोटा, लचका लगाया गया अगर यह चार अंगुल से कम चौड़ा है जायज़ है वरना नहीं।
सोने चांदी के तार से बने हुए कपड़ों के मसायलः
मसला : सोना चांदी से कपड़ा बुना जाये जैसा कि बनारसी कपड़े में ज़री बुनी जाती है कमखाब और पोत में ज़री होती है और इसी तरह बनारसी अमामे के किनारे और दोनों तरफ के हाशिये ज़री के होते हैं इनका यह हुक्म है कि अगर एक जगह चार अंगुल से ज़्यादा हो तो नाजायज़ है वरना जायज़ मगर कमख़ाब और पोत में चूंकि ताना बाना दोनों रेशम का होता है लिहाजा जरी अगरचे चार अंगुल से कम हो जब भी नाजायज़ है हां अगर सूती कपड़ा होता या ताना रेशम और बाना सूत होता और उसमें ज़री बुनी जाती तो चार अंगुल तक जायज़ होता, जैसा कि अमामा का सूत होता है और उसमें ज़री बुनी जाती है इसका यही हुक्म है कि एक जगह चार अंगुल से ज़्यादा नाजायज़ है यह हुक्म मर्दा के लिये है औरतों के लिये रेशम और सोना, चांदी पहनना जायज यह हुक्म लिये चार अंगुल की तखसीस नहीं इसी तरह औरतों के लिये गोटे, लचके अनक कितने चौड़े हों जायज है और मुगरक और गैर मुगरक का फर्क भी मदों ही के लिये है औरतों के लिये मुतलकन जायज़ है।
मसला : रेशम के कपड़े में तावीज़ सीकर गले में लटकाना या बाजू पर बांधना नाजायज है कि यह पहनने में दाखिल है इसी तरह सोने चांदी में रखकर पहनना भी नाजायज है और चांदी या सोने ही पर तावीज खुदा हुआ हो तो यह बदर्जा ऊला नाजायज़ है।
मसला : मकान को रेशम, चांदी सोने से आरास्ता करना मसलन दीवारों दरवाजों पर रेशमी पर्दे लटकाना और जगह जगह करीना से सोने चांदी के जुरूफ व आलात रखना जिससे मकसूद महज़ आराईश व ज़ेबाईश हो तो कराहियत है और अगर तकब्बुर व तफाखुर से ऐसा करता है तो नाजायज़ है। गालिबन कराहियत की वजह यह होगी कि ऐसी चीजें अगरचे इब्तेदाअन तकब्बुर से न हों मगर बिल आखिर उमूमन इनसे तकब्बुर पैदा हो जाया करता है।
फुकहा व उलेमा का लिबासः
मसला : फुक्हा व उलेमा को ऐसा कपड़ा पहनना चाहिये कि वह पहचाने जायें ताकि लोगों को उनसे इस्तेफादा का मौका मिले और इल्म की वक्अत लोगों के जेहन नशीन हो, और अगर इससे अपना जाती तशख्खुस व इम्तेयाज़ मकसूद हो तो यह मज़मूम है।
सोने चांदी के बटन मर्द को किस तरह का जायज़ है?
मसला : सोने चांदी के बटन कुर्ते या अचकन में लगाना जायज़ है जिस तरह रेशम की घुंडी जायज़ है यानी जब की बटन बगैर जंजीर हों और अगर जंजीर वाले बटन हों तो इनका इस्तेमाल नाजायज है कि यह जंजीर जेवर के हुक्म में है जिसका इस्तेमाल मर्द को नाजायज़ है।
मसला : नाबालिग लड़कों को भी रेशम के कपड़े पहनना हराम है और गुनाह पहनाने वाले पर है।
कौन कौन सा रंग मर्दो को जायज़ नहीं?
मसला : कुसुम या ज़ाफ़ान का रंगा हुआ कपड़ा पहनना मर्द को मना है, गहरा रंग होकर सुर्ख हो जाये या हल्का हो कि ज़र्द रहे दोनों का एक हुक्म है, औरतों को यह दोनों किस्म के रंग जायज हैं इन दोनों रंगों के सिवा बाकी हर किस्म के रंग ज़र्द, सुर्ख धानी बसन्ती चमपई बगैरह मर्दों को भी जायज़ है अगरचे बेहतर यह है कि सुर्ख रंग या शोख रंग के कपड़े मर्द न पहने खुसूसन जिन रंगों में जनानापन हो मर्द उसको बिल्कुल न पहने और यह मुमानियत रंग की वजह से नहीं बल्कि औरतों से तशब्बुह होता है, इस वजह से मुमानियत है लिहाज़ा अगर यह इल्लत न हो तो मुमानियत भी न होगी, मसलन बाज़ रंग इस किस्म के हैं कि अमामा रंगा जा सकता है और अगर कुर्ता, पायजामा उसी रंग से रंगा जाये चादर रंग कर ओढ़ें तो उसमें जनाना पन ज़ाहिर होता है तो अमामा को जायज़ कहा जायेगा और दूसरे कपड़ों को मकरूह ।
मसला : जिसके यहां मय्यत हुई उसे इज़हारे ग़म में स्याह कपड़े पहनना नाजायज़ है स्याह बिल्ले लगाना भी नाजायज़ है कि अव्वलन तो वह सोग की सूरत है दूसरी यह कि नसारा का यह तरीका है। अय्यामे मुहर्रम में यानी पहली मुहर्रम से बारहवीं तक तीन किस्म के रंग न पहने जायें, स्याह कि राफ़ज़ियों का तरीका है और सब्ज़ कि यह मुबतदईन यानी ताज़ियादारों का तरीका है और सुर्ख कि यह खारजियों का तरीका है कि वह मअज़ल्लाह इज़हारे मसर्रत के लिये सुर्ख पहनते हैं।