Dua E Qunoot | दुआ ए कुनूत
दुआ–ए कुनूत हिंदी में पढें।। Dua E Qunoot In Hindi Arabic & English
Dua E Qunoot In Hindi
” अल्ला हुम्मा इन्ना नस्ता ईनु क व नास्तगफिरुका व नु‘अ मिनु बिका व नतावक्कलु अलाइका वा नुस्नी अलैकल खैर व नशकुरुक वला नकफुरुका व नख्लऊ व नतरुकु मैंय्यफ–जुरूक अल्ला हुम्मा इय्याका नअबुदु व लका नुसल्ली व नस्जुदु व इलैका नस्आ व नहफिजु व नरजू रहमतका व नख्शा अज़ाबका इन्ना अज़ाबका बिल कुफ़्फ़ारि मुलहिक़ “
तर्जमा दुआ–ए कुनूत:– अय अल्लाह हम तुझ से मदद चाहे और तुझ से बख्शीश चाहे और तुझ पर ईमान और तुझ पर भरोसा रखें और तेरी बहुत अच्छी तारीफ करें और तेरा शुक्र करें और तेरी ना शुक्रिया ना करें और अलग करें और छोड़ें उसे शख्स को जो तेरी नाफरमानी करे अय अल्लाह हम तेरी ही इबादत करें और तेरे ही लिए नमाज़ पढ़े और सजदा करें और तेरी ही तरफ दौड़े और तेरा हुकम अताअत बजा लाएं और तेरी रहमत के उम्मीदवार। रहे और तेरी अजाब से डरते रहे बेशक तेरा अजाब काफिरों को मिलने वाला है ।
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नोट:– जिस शक्स को मुरावज्जह दुआ–ए कुनूत याद ना हो वह शख्स वित्र की आखिरी रकात में कोई और दुआ पढ़े कुल हुआ अल्लाहू ना पड़े और जब कोई सी भी दुआएं कुनूत याद हो जाए तो फिर वही दुआ पढ़े के किसी भी दुआएं कुनूत का पढ़ना वाजिब है यानी कुनूत के माना है जिल्लत और अजीज़ी का इजहार करना और अताअत वा बंदगी का इकरार करना ।
जिस दुआ में यह मफूम पाया जाए उस को दुआ ए कुनूत कहते हैं
Dua E Qunoot In Arabic
اللَّهُمَّ إِنَّا نَسْتَعِينُكَ وَنَسْتَغْفِرُكَ وَنُؤْمِنُ بِكَ وَنَتَوَكَّلْ عَلَيْكَ وَنُثْنِي عَلَيْكَ الْخَيْرَ وَ نَشْكُرُكَ وَلَا نَكْفُرُكَ وَنَخْلَعُ وَنَتُرُكُ مَنْ يَفْجُرُكَ اللَّهُمَّ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَلَكَ نُصَلِّي وَنَسْجُدُ وَإِلَيْكَ نَسْعُ وَنَحْفِدُ وَنَرْجُوا رَحْمَتَكَ وَنَخْشَى عَذَابَكَ إِنَّ عَذَابَكَ بِالْكُفَّارِ مُلْحِقٌ
Dua E Qunoot In English
“Allah humma inna nasta-ee– noka wa nastaghfiruka wa nu’minu bika wa natawakka– lu alaika wa nusni alaikal khair, wa nashkuruka wala nakfuruka wa nakhla-oo wa natruku mai yafjuruka, Allah humma iyyaka na’budu wa laka nusalli wa nasjudu wa ilaika nas aaa wa nahfizu wa narju rahma taka wa na– khshaa azaabaka inna azaa– baka bil kuffari mulhikun“
Tarjama Dua E Qunoot:- Aye Allah hum tujhse madad chahe aur tujhse bakhshish chahe aur tujh per Imaan aur tujh per Bharosa rakhe aur Teri bahut acchi tarif Karen aur tera shukr Karen aur Teri Na shukri na Karen aur alag Karen aur choren uss shakhs Ko Jo Teri nafarmani Karey aye Allah hum Teri hi ibadat Karen aur tere hi liye namaz padhe aur sajda Karen aur Teri hi taraf daude aur Teri hukum ata’at Baja layen aur Teri rahmat ke ummedwar rahe aur Teri azab se darte rahe beshak Tera azab kafiroon ko milane wala hai.
आप यहां नमाज़ के मसाइल भी पढ़ सकते हैं।
वित्र की नमाज़
वित्र की नमाज़ वाजिब है अगर किसी वजह से वक़्त में वित्र नहीं पढ़ा तो कज़ा वाजिब है। वित्र की नमाज़ तीन रकअतें हैं। एक सलाम से मिस्ल मग़रीब के। इसमें पहला अदा वाजिब है यानी दो रकअत पर बैठे और सिर्फ अत्तहियात पढ़कर तीसरी रकअत के लिये खड़ा हो जाये और तीसरी रकअत में भी अलहम्दो और सूरत पढ़े और इसी तीसरी रकअत में सूरह पढ़ने के बाद दोनों हाथ उठाकर कानों की लौ तक ले जाये और अल्लाहु अकबर कह कर फिर हाथ बांध लें और दुआए कुनूत पढ़े जब दुआए कुनूत पढ़ चुके तो अल्लाहु अकबर कहकर रुकू करे और बाकी नमाज़ पूरी करे।
मसला : दुआए कुनूत पढ़ना वाजिब है और इसमें किसी ख़ास दुआ का पढ़ना वाजिब नहीं अलबत्ता बेहतर वह दुआयें हैं जो हदीसों में आई। सबसे ज्यादा मशहूर दुआए कुनूत यह हैं।
अल्ला हुम्मा इन्ना नस्ता ईनु क व नास्तगफिरुका व नु’अ मिनु बिका व नतावक्कलु अलाइका वा नुस्नी अलैकल खैर
व नशकुरुक वला नकफुरुका व नख्लऊ व नतरुकु मैंय्यफ-जुरूक अल्ला हुम्मा इय्याका नअबुदु व लका नुसल्ली व नस्जुदु व इलैका नस्आ व नहफिजु व नरजू रहमतका व नख्शा अज़ाबका इन्ना अज़ाबका बिल कुफ़्फ़ारि मुलहिक़. “
मसला : जो दुआयें कुनूत न पढ़ सके वह यह पढ़े रब्बना आतिना फिदुनिया हस न तौंव व फिल आखि रति ह स न तौंव व किना अज़ाबन्नार। और जिससे यह भी न बन पड़े वह तीन बार अल्लाहुम मग फिली कहे।
मसला : दुआए कुनूत हमेशा हर शख़्स आहिस्ता पढ़े ख्वाह इमाम हो या मुक्तदी या मुनफ्रिद, अदा हो या कज़ा रमज़ान में हो या और दिनों में।
मसला : वित्र के अलावा और किसी नमाज़ में कुनूत न पढ़े हां अगर हादसा अज़ीमा वाकेय हो तो फर्ज़ में भी पढ़ सकता है और इसमें भी ज़ाहिर यह है कि रुक से पहले पढे जैसा कि वित्र में।
मसला : अगर अदा ऊला भूल कर खड़ा हो गया तो फिर बैठने की इजाज़त नहीं बल्कि आखिर में सजदये सहव करे।
मसला : अगर कुनूत भूल जाये और रुकू में याद आये तो न रुकू में पढ़े न कयाम की तरफ लौटकर खड़े होकर पढ़े बल्कि छोड़ दे और आख़िर में सज्दए सद्द कर ले नमाज़ हो जायेगी।
मसला : वित्र की तीनों रकअतों में मुतलकन किरात फर्ज़ है और हर रकअत में बाद फातेहा सूरत मिलाना वाजिब है।
मसला : बेहतर यह है कि पहली रकअत में सब्बेहिस्मा रब्बेकल आला या इन्ना अंज़लना पढ़े और दूसरी में कुल या अय्योहल काफ़िरुन और तीसरी में कुल हुवल्लाहु अहद पढ़े और कभी कभी और सूरतें भी पढ़ें।
मसला : वित्र की नमाज़ बैठकर या सवारी पर बगैर उज्ज नहीं हो सकती।
मसला : साहबे तर्तीब के लिये अगर यह याद है कि नमाज़ वित्र नहीं पढ़ी और वक़्त में गुंजाईश भी है तो फज्र की नमाज़ फासिद है ख़्वाह शुरू से पहले याद आये या बीच में।
वित्र की नमाज़ कब जमाअत से हो सकती है?
मसला : वित्र की नमाज़ जमाअत से सिर्फ रमज़ान शरीफ में पढ़ी जाये अलावा रमजान के मकरूह है बल्कि इस मुबारक महीने में जमाअत ही से पढ़ना मुस्तहब है। मसला : जिसने ईशा की फर्ज़ जमाअत के साथ नहीं पढ़ी वह वित्र तंहा पढ़े अगरचे तरावीह जमाअत से पढ़ी हो।
सुन्नतों और नफ़्लों का ब्यान
सुन्नते मोअक्किदा और गैर मोअक्किदा के अहकामः
सुन्नतें बाज़ मुअक्किदा है कि शरीअत में इस पर ताकीद आई बिला उज़्र एक बार भी तर्क करे तो मलामत के लायक है और तर्क की आदत करे तो फासिक मरदूदुश शहादह जहन्नम के लायक । इसका तर्क करीब हराम के है इसके छोड़ने वाले के लिये शफाअत से महरूम हो जाने का डर है। सुन्नते मुअक्किदा को सुननुल हुदा भी कहा जाता है। बाज़ सुन्नतें गैर मुअक्किदा है जिनको सुननुज़ जवाइद भी कहते हैं। इस पर शरीअत में ताकीद नहीं आई। कभी इसको मुस्तहब और मंदूब भी कहते हैं और नफ़्ल वह कि जिसका करना सवाब है और न करने में भी कुछ हर्ज नहीं।
कौन कौन सी नमाजें सुन्नते मुअक्किदा हैं?
मसला : सुन्नत मुअक्किदा यह हैं दो रकअत फज्र की फ़र्ज़ नमाज़ से पहले। चार जुहर की फर्ज़ से पहले और दो रकअत बाद में। मग्रिब के बाद दो रकअत, ईशा के बाद दो रकअत और जुमा से पहले चार रकअत और चार रकअत जुमा के बाद और बेहतर यह है कि दो और पढ़ ले यानी जुमा के बाद छः रकअत पढ़े।
सुन्नतों के छूट जाने के मसायलः
मसला : सुन्नते फज्र सबसे ज़्यादा मुअक्किद है यहां तक कि बाज़ उलेमा इसको वाजिब कहते हैं। लिहाजा यह बिला उज्ज न बैठकर हो सकती है न सवारी पर न चलती गाड़ी पर।
मसला : फज्र की नमाज़ क़ज़ा हो गई और ज़वाल से पहले क्ज़ा पढ़ी तो उसकी सुन्नत की भी कज़ा पढ़े वरना नहीं अलावा फज्र के और सुन्नतें क़ज़ा हो गई तो उनकी क़ज़ा नहीं।
मसला : जुहर या जुमा के पहले की सुन्नत छूट गई और फर्ज़ पढ़ ली तो अगर वक़्त बाकी है तो बाद फर्ज़ के पढ़े और अफ़ज़ल यह है कि पिछली सुन्नतें पढ़कर इनको पढ़े।