Baitul Khala Se Nikalne Ki Dua
Baitul Khala Se Nikalne Ki Dua | जब बैतुल खुला से निकले तो ( गुफरानका ) कहे और ये दुआ पढ़े ।
” अल्हम्दुलिल लाहिल लज़ी अज्हबा अननिल अज़ा व अफ़ानी (मिस्कात ) “
اَلْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَذْهَبَ عَنِّي الْأَذَى وَعَافَانِي
” Alhamdulillahil lazee azhaba ‘annil aza wa ‘afani “
तर्जुमा – सब तारीफे अल्लाह ही के लिए है जिसने मुझ से ईजा देने वाली चीज दूर की और मुझे चैन दिया।
Baitul Khala Se Nikalne Ki Dua In Hindi
” अल्हम्दुलिल लाहिल लज़ी अज्हबा अननिल अज़ा व अफ़ानी (मिस्कात ) “
तर्जुमा – सब तारीफे अल्लाह ही के लिए है जिसने मुझ से ईजा देने वाली चीज दूर की और मुझे चैन दिया।
Baitul Khala Se Nikalne Ki Dua In Arabic
اَلْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَذْهَبَ عَنِّي الْأَذَى وَعَافَانِي
Baitul Khala Se Nikalne Ki Dua In English
” Alhamdulillahil lazee azhaba ‘annil aza wa ‘afani “
आप यहाँ बैतूल खला के आदाब भी पढ़ सकते हैं
मसला : पाखाना या पेशाब फिरते वक़्त या तहारत करने में न किब्ला की तरफ मुंह हो न पीठ हो। चाहे घर में हो या मैदान में और अगर भूल कर किब्ला की तरफ मुंह या पीठ करके बैठ गया तो याद आते ही फौरन रुख बदल दे इसमें उम्मीद है कि फौरन उसके लिये मग्फित फरमा दी जाये।
मसला : बच्चे को पाखाना पेशाब फिराने वाले को मरूह है कि उस बच्चे का मुंह किब्ला को हो। यह फिराने वाला गुनाहगार होगा।
मसलाः पाख़ाना पेशाब करते वक़्त सूरज और चांद की तरफ न मुंह हो न पीठ। यूं ही हवा के रुख पेशाब करना मना है और हर ऐसी जगह पेशाब करना मना है जिससे छींटे ऊपर आयें।
मसला : नंगे सर पेशाब, पाखाना को जाना मना है और यूं ही अपने साथ ऐसी चीज़ ले जाना जिस पर कोई दुआ या अल्लाह व रसूल या किसी बुजुर्ग का नाम लिखा हो मना है। (आलमगीरी वगैरह)
इस्तिन्जे का तरीका और इस्तिन्जे से पहले की दुआः
जब पेशाब पाखाना को जाये तो मुस्तहब है कि पाखाना से बाहर यह पढ़ ले बिस्मिल्लाह अल्लाहुम्मा इन्नी आऊ जुबिका मिनल खुब्से वल खबाईस फिर बायो पांव पहले अंदर रखे जब बैठने के करीब हो तो कपड़ा बदन से हटाये और जरूरत से ज़्यादा बदन न खोले फिर पांव कुशादा करके बायें पांव पर जोर देकर बैठे और खामोशी से सर झुकाये प्राग़त हासिल करे जब फारिग हो जाये तो मर्द बायें हाथ से अपने आला को जड़ की तरफ से सिरे की तरफ सूते ताकि जो कतरे रुके हों वह निकल जायें फिर ढेलों से साफ करके खड़ा हो जाये और सीधे खड़े होने से पहले बदन छुपा ले और बाहर आ जाये निकलते वक्त पहले दाहिना पैर बाहर निकाले और निकलकर यह कहे
इस्तिन्जे के बाद की दुआः
गुफ्रान कलहम्दोलिल्लाहिल्लज़ी अज़हबा अन्नी मा यूज़ीनी व अम्सका अलइया मा यनफअनी ।
तहारतखाना में दाखिल होने के लिये दुआः
फिर तहारतखाने में यह दुआ पढ़कर जाये बिस्मिल्लाहिल अज़ीमे व बहम्देहि वलहम्दोलिल्लाहि अला दीनिल इस्लामे अल्लाहुम मज अल्नी मिनत तव्वाबी न वज अलनी मिनल मु त तह हरी नल्लज़ी न ला खौफुन अलइहिम व ला हुम यह ज़नून। पहले तीन-तीन बार हाथ धोयें फिर बैठकर दाहिने हाथ से पानी बहायें और बायें हाथ से धोयें और पानी का लोटा ऊंचा रखें ताकि छींटें न पड़े। पहले पेशाब का मक़ाम धोयें फिर पाखाना का मकाम धोयें, धोते वक़्त पाखाना का मुकाम, सांस का ज़ोर नीचे को देकर ढीला रखें और खूब अच्छी तरह ६ गोयें यहां तक कि धोने के बाद हाथ में बू बाकी न रहे जाये फिर किसी पाक कपड़े से पोछ डालें और अगर कपड़ा न हो तो बार बार हाथ से पोंछे कि बराये नाम तरी रह जाये और अगर वसवसा का गल्बा हो तो रुमाली पर पानी छिड़क लें फिर उस जगह से बाहर आकर यह दुआ पढ़ें।
तहारत खाने से बाहर आने की दुआः
अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी ज अ लल मा अ तहूरौंव वल इस्ला म नूराँव व काइदाँव व दलीलन इल्लल्लाहि तआला व इला जन्नातिन नईमिल लाहुम म हस्सिन फर्जी व तहहिर कल्बी व मह हिस जुनूबी।
मसलाः आगे या पीछे से जब नजासत निकले तो ढेलों से इस्तिन्जा करना सुन्नत है और अगर सिर्फ पानी ही से तहारत कर ली तो भी जायज़ है मगर मुस्तहब यह है कि ढेले लेने के बाद पानी से तहारत करे।
मसलाः ढेलों से तहारत उस वक्त काफी होगी जबकि नजासत से मखरज के आस पास की जगह एक दिरहम से ज़्यादा आलूदा न हो। अगर दिरहम से ज़्यादा जगह में लग जाये तो धोना फर्ज़ है मगर पहले देला लेना अब भी सुन्नत रहेगा।
गर्मी-जाड़े के इस्तिन्जे का फर्कः
मसलाः पाखाना के बाद मर्द के लिये ढेलों के इस्तेमाल का मुस्तहब तरीका यह है कि गर्मी के मौसम में पहला ढेला आगे से पीछे को ले जाये और दूसरा ढेला पीछे से आगे की तरफ लाये और तीसरा फिर आगे से पीछे को ले जाये और जाड़े के मौसम में पहला ढेला पीछे से आगे की तरफ लाये और दूसरा आगे से पीछे और तीसरा पीछे से आगे लाये।
मसलाः औरत हर मौसम में पहला ढेला आगे से पीछे ले जाये और दूसरा ढेला पीछे से आगे लाये और तीसरा फिर आगे से पीछे ले जाये।
मसलाः अगर तीन ढेलों से पूरी सफाई न हो तो और ढेले यूं ही ले। पांच सात नौ वगैरह, ताक अदद।
इस्तिबरा का हुक्मः
पेशाब के बाद जिसको यह ख्याल हो कि कोई कतरा बाकी रह गया या फिर आयेगा उस पर इस्तिबरा वाजिब है यानी पेशाब के बाद ऐसा काम करना कि कतरा अगर रुका हो तो गिर जाये।
इस्तिबरा की तारीफः
इस्तिबरा टहलने से होता है या ज़मीन पर ज़ोर से पांव मारने से होता है या ऊंची जगह से नीचे उतरने या नीची जगह से ऊपर चढ़ने से होता है या दाहिने पांव को बायें और बायें को दाहिने पर रखकर ज़ोर देने से होता है या खखारने या बायें करवट पर लेटने से होता है। इस्तिबरा इतनी देर तक करना चाहिये कि इत्मीनान हो जाये कि अब कतरा न आयेगा। इस्तिबरा का हुक्म मर्दों के लिये है औरत बाद फारिग होने के थोड़ी देर रुकी रहे फिर तहारत कर ले।
मसलाः कंकर, पत्थर, फटा हुआ कपड़ा यह सब ढेले के हुक्म में हैं। इनसे भी साफ कर लेना बिला कराहत जायज़ है।
मसला : काग़ज़ से इस्तिन्जा मना है चाहे उस पर कुछ लिखा हो या सादा हो।
मसलाः मर्द का हाथ बेकार हो तो उसकी बीवी इस्तिन्जा कराये और अगर औरत का हाथ बेकार हो तो शौहर कराये और कोई और रिश्तेदार बैआ, बैओ, भाई बहन इस्तिन्जा नहीं करा सकते बल्कि ऐसी सूरत में माफ है।
वुजू व तहारत से बचे हुए पानी का हुक्मः
मसलाः वुजू के बचे हुए पानी से तहारत न करना चाहिये।
मसलाः तहारत के बचे हुए पानी को फेकना न चाहिये कि यह असराफ है
बल्कि किसी और काम में लायें और वुजू भी कर सकता है।