वाकिया-ए-करबला।। Waqia-e-karbala. सय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन की हयाते मुबारक
الحمد لله رب المشرقين ورب المغربين والصلاة والسلام على نبينا جد الحسن والحسين وعلى اله واصحابه الذين فازوا في الدارين اما بعد فَأَعُوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْطَنِ الرَّحِيمِ بِسْمِ اللهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ قَدْ جَاءَ كُمْ مِّنَ اللَّهِ نُورٌ صَدَقَ الله العلى العظيم وصدق رسوله النبي الكريم ونحن على ذالك لمن الشاهدين
والشاكرين والحمد لله رب العالمين एक मर्तबा हम और आप सब लोग मिल कर सारी काइनात के आका व मौला जनाब अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के दरबारे दुररे बार में बुलंद आवाज़ से दुरूद शरीफ का नजाना और हदिया पेश करें।
अलैहि व सल्लम, सलातंव् व सलामन् अलैक या रसूलल्लाह। हम्दो-सलात के बाद कुरआने मुकद्दस की आयते करीमा के जिस टुकड़े की तिलावत का शर्फ हम ने हासिल किया है। यानीः قَدْ جَاءَ كُمْ مِّنَ اللُّونُورٌ उसका तर्जमा यह हैः अल्लाह तआला की जानिब से तुम्हारे पास नूर आ गया। इस आयते करीमा में हमारे नबीए अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को नूर फरमाया गया है। और नूर वह है जो खुद रौशन और चमकदार हो और दूसरों को रौशन व चमकदार बनाए। देखिये आफ्ताब नूर है जो रौशन व ताबनाक है और जिस पर वह अपना अक्स डालता है उसे भी रौशन व ताबनाक बना देता है। मगर वह सिर्फ ज़ाहिर को चमकाता है। और हमारे आका व मौला प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ऐसे नूर हैं जो ज़ाहिर व बातिन दोनों को चमकाते हैं, तो जो लोग कि इस नूर से चमके वह खूब चमके। फिर उन में जो नूर की गोद में खेल कर बड़े हुए यानी निवाए रसूल सय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु तो वह ऐसे चमके कि अपने तो अपने अगियार (गैरों) की भी आंखें उन की चमक से चक्का चौंध हैं और यज़ीदियों की हज़ार मुखालफत के बावजूद इन्शा अल्लाहुर रहमान वह कियामत तक ऐसे ही चमकते रहेंगे।
सल्लल्लाहु अलन् नबिय्यिल् उम्मियी व आलिही सल्लल्लाह तआला अलैहि व सल्लम, सलातंवू व सलामन् अलैक या रसूलल्लाह।
• आप की विलादत (पैदाइश)
सैय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की विलादते मुबारकां 5 शाबान 4 हिजरी को मदीना तैयिबा में हुई। सरकारे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने आप के कान में अज़ान दी, मुंह में लुआबे दहन (थूक मुबारक) डाला और आप के लिये दुआ फरमाई फिर सात्वें दिन आप का नाम हुसैन रखा और अकीका किया। हज़रत इमामे हुसैन की कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह और लक्ब “सिब्ते रसूल” व “रैहानतुर रसूल” है। हदीस शरीफ में है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि हज़रत हारून अलैहिस्सलाम ने अपने बेटों का नाम शब्बर व शब्बीर रखा और मैं ने अपने बेटों का नाम उन्हीं के नाम पर हसन और हुसैन रखा।
(सवाइके मुहर्रिकाः118)
इसी लिये हसनैन करीमैन को शब्बर व शब्बीर के नाम से भी याद किया जाता है। सुर्यानी ज़बान में शब्बर व शब्बीर और अरबी ज़बान में हसन व हुसैन दोनों के मना एक हैं। और हदीस शरीफ में है किः الحَسَنُ وَالْحُسَيْنُ إِسْمَانِ مِنْ أَهْلِ الْجَنَّةِ हसन और हुसैन जन्नती नामो में से दो नाम हैं। अरब के ज़मानए जाहिलिय्यत में यह दोनों नाम नहीं थे।
हज़रत उम्मुल फजल बिन्तुल हारिस रज़ियल्लाहु तआला अन्हा यानी हुज़ूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की चची हज़रत अब्बास बिन मुत्तलिब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की अहलिया मोहतरमा एक दिन हुजूर की खिदमत में हाज़िर हुईं और अर्ज किया या रसूलल्लाह ! आज मैं ने एक ऐसा ख़्वाब देखा है जिस से मैं डर गई हूं, हुजूर अलैहिस्सलाम ने फरमाया तू ने क्या देखा है? उन्हों ने अर्जु किया वह बहुत सख़्त है जिस के बयान करने की मैं अपने अन्दर जुर्जत नहीं पाती हूं। हुजूर ने फरमाया बयान करो तो उन्हों ने अर्ज किया मैं ने यह देखा कि हुजूर के जिस्मे मुबारक का एक टुक्ड़ा काट कर मेरी गोद में रखा गया है। इरशाद फरमाया तुम्हारा ख़्वाब बहुत अच्छा है। इन्शा अल्लाह तआला फातिमा ज़हरा के बेटा पैदा होगा और वह तुम्हारी गोद में दिया जाएगा।
चुनांचे ऐसा ही हुआ, हज़रत इमाम हुसैन रंज़ियल्लाहु तआला अन्हु पैदा हुए और हज़रत उम्मुल फज़ल की गोद में दिये गए। (मिश्कातः 572)
आप के फज़ाइल
हज़रत इमामे हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के फज़ाइल में बहुत सी हदीसें वारिद हैं। आप हज़रात पहले उन हदीसों को समाअत फरमाएं जो सिर्फ आप के मनाकिब में हैं। फिर जो हदीसें कि दोनों शाहज़ादों के फज़ाइल को शामिल हैं वह बाद में पेश की जायेंगी। तिर्मिज़ी शरीफ की हदीस है हज़रत याला बिन मुर्रा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुजूर पुर नूर सैयिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमायाः حُسَيْنُ مِنِى وَأَنَا مِنَ الْحُسَيْنِ हुसैन मुझ से हैं और मैं हुसैन से हूं। यानी हुसैन को हुजूर से और हुजूर को हुसैन से इन्तिहाई कुर्ब है गोया कि दोनों एक हैं तो हुसैन का जिक्र हुजूर का जिक्र है, हुसैन से दोस्ती हुजूर से दोस्ती है, हुसैन से दुश्मनी हुजूर से दुश्मनी है। और हुसैन से लड़ाई करना हुजूर से लड़ाई करना है। सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम व रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ।
और सरकारे अक़्दस इरशाद फरमाते हैं: أَحَبُّ اللَّهُ مَنْ أَحَبٌ حُسَبُنًا जिस ने हुसैन से मुहब्बत की उस ने अल्लाह तआला से मुहब्बत की। (मिश्कातः 571)
‘इस लिये कि हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से. मुहब्बत करना हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से मुहब्बत करना है और हुजूर से मुहब्बत करना अल्लाह तआला से मुहब्बत करना (मिर्कात शरह मिश्कातः:5/605) है।
और हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया जिसे पसंद हो कि जन्नती जवानों के सरदार को देखे तो वह हुसैन बिन अली को देखे ।
(नूरुल अब्सारः114)
और हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम मस्जिद में तशरीफ लाए और फरमाया छोटा बच्चा कहां है? हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु दौड़ते हुए आए और हुजूर की गोद में बैठ गए और अपनी उंगलियां दाढ़ी मुबारक में दाखिल कर दीं, हुजूर ने उनका मुंह खोल कर बोसा लिया फिर फरमाया اللَّهُمَّ إِنِّي أُحِبُّهُ فَاحِبَهُ وَاحِبٌ مَنْ يُحِبُّهُ : अल्लाह ! मैं इस से मुहब्बत करता हूं तू भी इस से मुहब्बत फरमा और उस से भी मुहब्बत फरमा कि जो इस से मुहब्बत करे। (नूरुल अब्सारः 114)
- मालूम हुआ कि हुजूर आकाए दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने सिर्फ दुनिया वालों ही से नहीं चाहा कि वह हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मुहब्बत करें बल्कि खुदाए
तआला से भी अर्ज किया कि तू भी इस से मुहब्बत फरमा और बल्कि यह भी अर्ज किया कि हुसैन से मुहब्बत करने वाले से भी मुहब्बत फरमा।
और हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं ने रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को देखा कि वह हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के लुआबे दहेन को इस तरह चूस्ते हैं जैसे कि आदमी खजूर चूस्ता है। يَسْتَصُّ لَعَابَ الْحُسَيْنِ كَمَا يَمُصُ (नूरुल अबूसारः 114) الرجل الثمرة
और मरवी है कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन्न उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा कञ्बा शरीफ के साये में तश्रीफ फरमा थे, उन्हों ने हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को तश्रीफ लाते हुए देखा तो फरमायाः هَذَا أَحَبُّ أَهْلِ الْأَرْضِ إِلَى أَهْلِ السَّمَاءِ الْيَوْمَ आज यह आसमान वालों के नज़्दीक तमाम ज़मीन वालों से ज़्यादा महबूब हैं। (अशफुल मोअब्बदः 65)
हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने पैदल चल कर 25 हज किये। आप बड़ी फज़ीलत के मालिक थे और कस्रत से नमाज़, रोज़ा, हज, सदका और दीगर उमूरे खैर अदा फरमाते थे।
(बरकाते आले रसूलः 145)
हज़रत अल्लामा जामी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फरमाते हैं कि एक रोज़ सैय्यिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को अपने दाहिने और अपने साहिब ज़ादे हज़रत इब्राहीम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को अपने बाएं बिठाए हुए थे कि हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और अर्ज किया या रसूलल्लाह ! खुदाए जुल जलाल इन दोनों को आप के पास जमा न रहने देगा, इन में से एक को वापस बुला लेगा, अब. इन दोनों में से जिसे आप चाहें पसंद फरमाएं। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया अगर हुसैन रुख़्सत हो जाएं तो उन की जुदाई में फातिमा व अली को तकलीफ होगी और मेरी भी जान सोज़ी होगी और अगर इब्राहीम वफात पा जाएं तो ज़्यादा ग़म मुझी को होगा, इस लिये मुझे अपना ग़म पसंद है। इस वाकिआ के तीन रोज़ बाद हज़रत इब्राहीम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु वफात पा गए।
इस के बाद जब भी हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की खिदमत में आते, हुजूर मरहबा फरमाते, फिर उन की पेशानी को बोसा देते और लोगों से मुखातब होकर फरमाते मैं ने हुसैन पर अपने बेटे इब्राहीम को कुर्बान कर दिया है। (शवाहिदुन् नुबुव्वतः305)
अब वह रिवायतें मुलाहेज़ा फरमाएं जो दोनों साहिब ज़ादों के फज़ाइल पर मुश्तमिल हैं।
हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि नबीए अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमायाः हसन और हुसैन जन्नती जवानों के सरदार हैं। (मिश्कातः 570)
(गयासुत् लुगात में है बिज़म्मे अव्वल व तश्दीदे सानी जवाना बई मअना हम् जमञ् शाब अस्त अज़ मुन्तखब व संराह।)
और हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूले अक्रम अलैहिस् सलातु वत्तस्लीम ने फरमायाः إِنَّ أَحْسَنَ وَالْحُسَيْنَ هُمَا رَبَّحَانِي مِن الدُّنيا हसन और हुसैन दुनिया के मेरे दो फूल हैं। (मिश्कातः 570( और हज़रत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि एक रात मैं किसी ज़रूरत से सरवरे काइनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ, आप बाहर तश्रीफ लाए तो किसी चीज़ को उठाए हुए थे जिसे मैं नहीं जान सका, जब अर्जे हाजत से मैं फारिग हुआ तो दरियाफ्त किया हुजूर यह क्या उठाए हुए हैं, आप ने चादरे मुबारक हटाई तो मैं ने देखा कि आप के दोनों पहलुओं में हज़रत हसन और हज़रत हुसैन हैं। आप ने फरमायाः यह दोनों मेरे बेटे हैं और मेरे नवासे हैं। और फिर फरमायाः وَأَحِبْ مَنْ يُحِبُّهُمَا ऐ अल्लाह ! मैं इन दोनों को महबूब रखता हूं, तू भी इन को महबूब रख और जो इन से मुहब्बत रखता है उन को भी महबूब रख । (मिश्कातः 570)
और हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इस हाल में बाहर तशरीफ लाए कि आप एक कंधे पर हज़रत हसन और दूसरे कंधे पर हज़रत हुसैन को उठाए हुए थे यहां तक कि हमारे करीब तशरीफ ले आए और फरमाया مَنْ أَحَبُهُما فَقَدْ أَحَبَّنِي وَمَنْ أَبْغَضَهُمَا فَقَدْ أَبْغَضَنِي : जिस ने इन दोनों से मुहब्बत की तो उस ने मुझ से मुहब्बत की और जिस ने इन दोनों से दुश्मनी की उस ने मुझ से दुश्मनी की। (अश्शफुल मोअब्यदः 71)
हज़रत फातिमा ज़हरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि मैं हसन और हुसैन को लेकर हुजूर पुर नूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की खिदमत में हाज़िर हुई और अर्ज किया हुजूर! यह आप के दोनों नवासे हैं, इन्हें कुछ अता फरमाइये, तो हुजूर ने फरमायाः أَمَّا حَسَنُ فَلَهُ هَيْبَتِي وَسُودَدِى وَأَمَّا حُسَيْنٌ فَلَهُ حُرَأْتِي وَجُودِي हसन के लिए हैबत वा सियादत है और हुसैन के लिये मेरी जुर्जत व सखावत है।
(अशफुल मोअब्बदः 72)
हज़रत जाफर सादिक बिन मुहम्मद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के सामने हज़रत हसन व हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा कम सिनी के ज़माने में एक दूसरे से कुश्ती लड़ रहे थे और हुजूर बैठे हुए यह कुश्ती मुलाहेज़ा फरमा रहे थे, तो हज़रत हसन से हुजूर ने फरमाया, हुसैन को पकड़ लो, हज़रत फातिमा ज़हरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने जब यह सुना तो उन्हें तअज्जुब हुआ और अर्ज किया अब्बा जान! आप बड़े से फरमा रहे हैं कि छोटे को पकड़ लो, हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया दूसरी तरफ जिब्रील हुसैन से कह रहे हैं कि हसन को पकड़ लो। यज़ीदी आंखें खोल कर देख लें कि हज़राते हसनैन करीमैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा का वह मकाम है कि हज़रत जिब्रील अलैहिस् सलाम आ कर उन के दरमियान कुश्ती लड़ा रहे हैं।
और हज़रत अल्लामा नसफी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फरमाते हैं कि हसनैन करीमैन ने दो तख्तियां लिखीं, हर एक ने कहा कि हमारी तहरीर अच्छी है, तो फैसले के लिये अपने बाप हज़रत अली • कर्रमल्लाहु तआला वज्हहुल करीम के पास ले गए। आप बड़े-बड़े हैरत अंगेज़ फैसले फरमाते हैं, मगर यह फैसला फरमा न सके, इस लिये कि किसी साहिब ज़ादे की दिल श्किनी मनज़र न थी, फरमाया कि अपनी मां के पास ले जाओ, दोनों शहज़ादे हज़रत फातिमा ज़हरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा की खिदमत में हाज़िर हुए और कहा कि अम्मा जान! आप फैसला फरमा दें कि हम में से किस ने अच्छा लिखा है? आप ने फरमाया कि मैं यह फैसला नहीं कर सकूंगी, इस मामले को तुम लोग अपने नाना जान के पास ले जाओ, शहज़ादे हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की खिदमत में आ गए और अर्ज किया कि नाना जान आप फैसला फरमा दें कि हम में से किस की तहरीर अच्छी है? सारी दुनिया का फैसला फरमाने वाले हुजूर ने सोचा कि अगर हसन की तहरीर को अच्छा कहूं तो हुसैन को मलाल होगा और हुसैन की तहरीर को उम्दा कहूं तो हसन को रंज होगा और किसी का रंजीदा होना उन्हें गवारा नहीं था, इस लिये आप ने फरमाया कि इस का फैसला जिब्रील करेंगे। हज़रत जिब्रील बहुक्मे रब्बे जलील नाज़िल हुए और अर्ज किया या रसूलल्लाह! इस का फैसला खुदावन्दे कुद्दूस फरमाएगा, मैं उस के हुक्म से एक सेब लाया हूं, उस ने फरमाया कि मैं इस जन्नती सेब को तख़्तियों पर गिराऊं जिस तख़्ती पर यह सेब गिरेगा, फैसला हो जाएगा कि उस तख़्ती की तहरीर अच्छी है। अब ऊपर से उन तख़्तियों पर सेब गिराया, अल्लाह तआला के हुक्म से रास्ते ही में सेब कट कर आधा एक तख़्ती पर और दूसरा आधा दूसरी तख़्ती पर गिरा। इस तरह अहकमुल हाकिमीन जल्ल जलालुहू ने फैसला फरमा दिया कि दोनों शहज़ादों की तहरीरें अच्छी हैं और किसी एक की तहरीर को अच्छी करार देकर दूसरे की दिल शिक्नी गवारा न फरमाया। (नुज़्हतुल मजालिसः 2/390)
खुदावन्दे कुद्दूस की बारगाह में हसनैन करीमैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा का यह मकाम है मगर अफ्सोस कि मुखालिफीन को उनकी अज़मत व रिफ्अत नज़र नहीं आती।
आप की शहादत की शोहरत सैय्यिदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की पैदाइश के साथ ही आप की शहादत की शोहरत भी आम हो गई। हज़रत अली, हज़रत फातिमा ज़हरा और दीगर सहाबए किबार व अहले बैत के जां निसार रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम सभी लोग आप के ज़मानए शीर ख़्वारगी (दूध पीने के ज़माना) ही में जान गए कि यह फर्ज़न्दे अर्जुमन्द जुल्म व सितम के हाथों शहीद किया जाएगा और इन का खून निहायत बेदर्दी के साथ ज़मीने करबला में बहाया जाएगा जैसा कि उन अहादीसे करीमा से साबित है जो आप की शहादत के बारे में वारिद हैं।
हज़रत उम्मुल फज़ल बिन्त हारिस रज़ियल्लाहु तआला अन्हा यानी हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की ज़ौजा फरमाती हैं कि मैं ने एक रोज़ नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को आप की गोद में दिया, फिर मैं क्या देखती हूं कि हुजूर की मुबारक आंखों से लगातार आंसू बह रहे हैं, मैं ने अर्ज किया या रसूलल्लाह! मेरे मां बाप आप पर कुर्बान हों यह क्या हाल है? फरमाया मेरे पास जिब्रील अलैहिस् सलाम आए और उन्हों ने यह खबर पहुंचाई किः أُمِّنِيُّ سَتَقْتُلُ إِبْنِيُّ هَذَا मेरी उम्मत मेरे इस फर्ज़न्द को शहीद करेगी। हज़रत उम्मुल फज़ल फरमाती हैं कि मैं ने अर्ज किया या रसूलल्लाह! क्या इस फर्ज़न्द को शहीद कर देगी? हुजूर ने फरमाया हां, फिर जिब्रील मेरे पास उस की शहादतगाह की मिट्टी भी लाए। (मिश्कातः 572)
और इब्ने सअद व तबरानी हज़रत आइशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तंआला अन्हा से रिवायत करते हैं उन्हों ने कहा कि हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि जिब्रील ने मुझे खबर दी मेरा बेटा हुसैन मेरे बाद अरज़े तफ में कत्ल किया जाएगा और जिब्रील मेरे पास वहां की यह मिट्टी भी लाए और मुझ से कहा कि यह हुसेन की ख़्वाबगाह (मक़्तल) की मिट्टी है। तफ करीब कूफा उस मकाम का नाम है जिस को करबला कहते हैं। (सवाइके मुहर्रिकाः 118)
और हज़रत अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत हैं कि बारिश के फिरिश्ते ने हुजूर अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की खिदमत में हाज़िरी देने के लिये खुदावन्दे कुद्दूस से इजाज़त तलब की, जब वह फिरिश्ता इजाज़त मिलने पर बारगाहे नुबुव्वत में हाज़िर हुआ तो उस वक़्त हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु आए और हुजूर की गोद में बैठ गए, तो आप उनको चूमने और प्यार करने लगे, फिरिश्ते ने अर्ज किया या रसूलल्लाह ! क्या आप हुसैन से प्यार करते हैं? हुजूर ने फरमाया हां, उस ने फरमाया आप की उम्मत हुसैन को कत्ल कर देगी अगर आप चाहें तो मैं उन की कत्लगाह (की मिट्टी) आप को दिखा दूं। फिर वह फिरिश्ता सुर्ख मिट्टी लाया जिसे उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे सलमह रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने अपने कपड़े में ले लिया। और एक रिवायत में है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया ऐ उम्मे सलमह। जब यह मिट्टी खून बन जाए तो समझ लेना कि मेरा बेटा हुसैन शहीद कर दिया गया। हज़रत उम्मे सलमह रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि मैं ने उस मिट्टी को शीशी में बन्द कर लिया जो हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत के दिन खून हो गई। (सबाइके मुहर्रिकाः 118) और इब्ने सअद हज़रत शअबी से रिवायत करते हैं कि हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जंगे सिफ्फीन के मौके पर करबला से गुज़र रहे थे कि ठहर गए और उस ज़मीन का नाम दरियाफ्त फरमाया, लोगों ने कहा कि इस ज़मीन का नाम करबला है, करबला का नाम सुनते ही आप इस कद्र रोए कि ज़मीन आंसुओं से तर हो गई, फिर फरमाया कि मैं हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की खिदमत में एक रोज़ हाज़िर हुआ तो देखा कि आप रो रहे हैं, मैं ने अर्ज किया या रसूलल्लाह! आप क्यों रो रहे हैं? फरमाया अभी मेरे पास जिब्रील आए थे, उन्हों ने मुझे खबर दी إِنَّ وَلَدِي الْحُسَيْنَ يُقْتَلُ بِشَاطِيُّ الْفُرَاتِ بِمَوْضِعِ يُقَالُ لَهُ मेरा बेटा हुसैन दरियाए फुरात के किनारे उस जगह पर शहीद किया जाएगा जिस को करबला कहते हैं। (सवाइके मुहर्रिकाः 118)
अबू नईम असुबग बिन नबाता रिवायत करते हैं उन्हों ने फरमाया कि हम हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के साथ हज़रत हुसैन की कब्रगाह से गुज़रे तो आप ने फरमाया कि यह शहीदों के ऊंट बिठाने की जगह है और इस मकाम पर उन के कजावे रखे जायेंगे और यहां उन के खून बहाए जायेंगे। आले मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के बहुत से जवान इस मैदान में शहीद किये जायेंगे और ज़मीन व आसमान उन पर रोएंगे। (खसाइसे कुब्रशः2/126)
इन अहादीसे करीमा से वाज़ेह तौर पर मालूम हुआ कि हुजूर पुर नूरं सैयिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के शहीद होने की बार-बार इत्तिलाञ् दी गई और हुजूर ने भी इस का बारहा ज़िक फरमाया और यह शहादत हज़रत इमाम हुसैन की अहदे तिफ्ली ही में खूब मशहूर हो चुकी थी और सब को मालूम हो गया था कि आप के शहीद होने की जगह करबला है बल्कि उस के चप्पे-चप्पे को पहचानते थे और उन्हें खूब मालूम था कि शुहदाए करबला के ऊंट कहा बांधे जायेंगे, उन का सामान कहां रखा जाएगा और उन के खून कहा बहेंगे? लेकिन नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम, हां वह नबी कि खुदावन्दे कुद्दूस जिन की रज़ा जोई फरमाता है وَلَسَوْفَ يُعْطِيكَ رَبُّكَ قرضى जिन का हुक्म बहरो-बर में नाफिज़ है, जिन्हें शजरो-हजर सलाम करते हैं, चांदा जिन के इशारों पर चला करता है, जिन के हुक्म से डूबा हुआ सूरज पलट आता है बल्कि बहुक्मे इलाही कौनैन के ज़र्रा-ज़र्रा पर जिन की हुकूमत है, वह नबी प्यारे नवासे के शहीद होने की खबर पाकर आंखों से आंसू तो बहाते हैं मगरं नवासे को बचाने के लिये बारगाहे इलाही में दुआ नहीं फरमाते और न हज़रत अली व हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा अर्ज करते हैं कि या रसूलल्लाह ! हुसैन की ख़बरे शहादत ने दिलो-जिगर पारा-पारा कर दिया, आप दुआ फरमाएं कि खुदाए अज़्ज़ जल्ल हुसैन को उस हादिसे से महफूज़ रखे। और अहले बैत, अज़्वाजे मुतहहरात और सहाबए किबार सब लोग हज़रत इमाम हुसैन के शहीद होने की खबर सुनते हैं मगर अल्लाह के महबूब प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की बारगाह में कोई दुआ की दरख्वास्त पेश नहीं करता जबकि आप की दुआ का हाल यह है किः इजाबत का सेहरा इनायत का जोड़ा दुल्हन बन के निकली दुआए मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इजाबत ने झुक कर गले से लगाया बढ़ी नाज से जब दुआ-ए-मुहम्मदः सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को बचाने के लिये दुआ नहीं फरमाई और न हुजूर से इस के बारे में किसी ने दुआ की दरख्वास्त पेश की, सिर्फ इस लिये कि हुसैन का इम्तिहान हो, उन पर तकालीफ व मसाइब के पहाड़ टूटें और वह इम्तिहान में कामयाब होकर अल्लाह के प्यारे हों कि अब नबीं कोई हो नहीं सकता तो नवासए रसूल का दर्जा इसी तरह बुलंद से बुलंद तर हो जाए और रज़ाए इलाही हासिल होने के साथ दुनिया व आखिरत में उन की अज़मत व रिफ्ज़त का बोल-बाला भी हो जाए।
एक ऐतराज़ और उसका जवाब बाज़ गुस्ताख जो ऐतराज़ करते हैं कि जब रसूलुल्लाह अपने नवासे को कत्ल से नहीं बचा सके तो दूसरे को किसी मुसीबत से क्या बचा सकते हैं, तो इसका जवाब यह है कि अल्लाह के महबूब प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने अपने नवासे हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को शहीद होने से बचाने की कोशिश ही नहीं फरमाई, इस लिये कि आप ने उनके लिये कत्ल से महफूज़ रहने की दुआ ही नहीं की और जब आप ने उन को शहीद होने से बचाने की कोशिश ही नहीं फरमाई तो फिर यह कहना ही सिरे से गलत है कि वह अपने नवासे को कत्ल से नहीं बचा सके। जैसे कि हमारा कोई आदमी दरिया में डूब रहा हो और हमारे पास डूबने से बचाने के लिये कश्ती वगैरा तमाम सामान मुहैया हों मगर हम बचाने की कोशिश न करें, तो यह कहना गलत है कि हम बचा न सके। हां अगर हम बचाने की कोशिश करते और न बचा पाते तो अल्बत्ता यह कहना सहीह होता कि हम नहीं बचा सके। तो अल्लाह के महबूब सैयिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम अपने नवासे को बचाने की कुद्रत रखने के बावजूद उन को बचाने की कोशिश नहीं फरमाई, लिहाज़ा यह कहना गलत किं उन को नहीं बचा सके। खुदाए तआला समझ अता फरमाए।
और बाज़ गुस्ताख जो यह कहते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जो सैयिदुल अंबिया के नवासे और सहाबी हैं जिन के दर्जा को बड़े से बड़ा वली और गौस व कुतब नहीं पहुंच सकता, जब यह अपनी और अपने अज़ीज़ व अकारिब की जान नहीं बचा सके तो दूसरा कोई गौस व कुतब किसी की क्या मदद कर सकता है, तो इस ऐतराज़ का जवाब यह है कि सैय्यिदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मैदाने करबला में अपनी जान बचाने नहीं गए थे बल्कि अपनी जान देकर इस्लाम बचाने गए थे।
और जान बचाने का रास्ता तो आप के लिये हमेशा खुला हुआ था इस लिय कि जब जान बचाने के लिये हरामे कतई का खाना पीना और झूठ बोलना जाइज़ हो जाता है तो आप जान बचाने की खातिर थोड़ी देर के लिये यज़ीद की झूठी बैअत कर लेते और जब दुश्मन की गिरफ्त से आज़ाद हो जाते तो इनकार कर देते। लेकिन हकीकत यह है कि इमामे आली मकाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को जान बचाना नहीं था बल्कि जान देकर इस्लाम को बचाना था।
और रही अज़ीज़ व अकारिब की जान बचाने की बात तो आप के जो अज़ीज़ व अकारिब मैदाने करबला में शहीद हुए उन की दुनियवी जिंदगी बस इतनी ही थी और जिस की ज़िंदगी ख़त्म हो जाती है उसे कोई बचा नहीं सकता। इरशादे खुदावन्दी हैः لإِذَاحَاءَ أَحَلُهُمُ لَا يَسْتَأْخِرُونَ سَاءَةٌ و
. ينظيتوه जब उनको मौत आएगी तो एक साअत आगे पीछे नहीं होंगे।
(पाराः 11, रुकूञ्ः1) और अल्लाह ताला इरशाद फरमाया किसी وَلَنْ يُؤَخِّرَ اللَّهُ نَفْسًا إِذَا جَاءَ أَجَلُهَا जान की मौत को हरगिज़ मोअख्खर नहीं फरमाएगा जबकि उस का वक़्त आ जाएगा।
(पाराः 28, रुकू14) अगर यह माकूल जवाब ऐतराज़ करने वालों की समझ में न आए तो वह दिन दूर नहीं जबकि वह यह भी कहेंगे कि अंबियाए किराम का कत्ल किया जाना कुरआने मजीद से साबित है। और जब अल्लाह तआला अपने महबूब अंबिया को कत्ल से नहीं बचा सका तो फिर किसी दूसरे की क्या मदद कर सकता है। (मज़ाज़ल्लाह)