Shab E Barat Ki Namaz | नवाफिल Shab E Barat
1. मगरिब की नमाज के बाद गुस्ल करके दो रकात नमाज तहतुल वजू पढ़ें इसके बाद आठ रकात नमाज नफिल चार सलाम से अदा करें । हर रकात में बाद अल्हम्दु के सूरह इखलास पांच बार पढ़े तो गुनाहों से पाक होगा’ दुआएं कबूल होगी और सवाबे अज़ीम हासिल होगा।
2. चार रकात नफ्ल एक सलाम से पढें। हर रकात में बाद अल्हम्द के सूरा इखलास 50 बार पढ़े तो इस तरह गुनाहों से बाहर आएगा जैसा के शिक्मे मादर से निकला था।
3. दो रकअत नमाज़ पढ़े–हर रकात में बाद अल्हम्दु के आयतल कुर्सी एक बार और सूरह इखलास 15 बार’ बाद सलाम के दरूद शरीफ 100 बार पढ़े तो रिज्क में वुसअत होगी’ गम से निजात मिलेगी’ गुनाहों की बख्शीश वा मगफिरत होगी।
4. 14 रकात नमाज नफिल 7सलाम से अदा करें– हर रकात में बाद अल्हम्द के जो सूरह चाहे पढ़े बाद फराग नमाज के 100 मर्तबा दरूद शरीफ पढ़कर जो भी दुआ मांगे कबूल होगी।
5. सलहाये उम्मत का दस्तूर है के इस रात को सलातुल तस्बीह अदा करते हैं हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने यह नमाज अपने चाचा हजरत अब्बास रज़ी अल्लाह तला अन्ह को सिखाई थी और फरमाया था कि ऐ चचा इस नमाज के पढ़ने से अगले पिछले दानिसता वा नादिता तमाम गुनाह बख्श दिए जाते हैं दूसरी हदीस में ऐसा आया है की अय मेरे चचा अगर तुम्हारे गुनाह कफ़ी दरिया वा रेग बयाबान से भी ज्यादा होंगे तो इस नमाज की बरकत से बख्श दिए जाएंगे।
6. सालातुल तस्बीह:– सालातुल तस्बीह 4 रकात इस तरह अदा करें के ( सना सुब्हानका अल्लाहुमा) के बाद 15 बार (सुबहानाल्लाहि वालहमदुलिल्लाही वाला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर) पढें ।
फिर –औज़ु बिल्लाही मिनाश शैतान राज़ीम बिस्मिल्लाहिररहमानिररहिम
और सूरह फातिहा के बाद और कोई सूरह पढ़ कर 10 बार यही तस्बीह पढ़ें’ फिर रुकु में (सुबहाना रब्बियल अज़ीम )के बाद 10 बार फिर रुकु से सर उठाकर 10 बार फिर पहले सजदे में ( सुबहाना रब्बियल आला) के बाद 10 बार फिर सजदा से सर उठाकर 10 बार फिर दूसरे सजदा में 10 बार यानी एक रकात में 75 बार तस्बीह हुई इसी तरह चार रकात अदा करें । चार रकात में जुमला तस्बीह 300 मर्तबा हुई बाद फराग नमाज पर अस्तगफार ’दरूद शरीफ 100–100 बार पढ़कर सजदे में सर रखकर खुदा– ए ताला से नेक तौफीक की दुआ करें
ज़रूरी:–
इस रात में तीन मर्तबा सूरह यासीन शरीफ की तिलावत करना चाहिए पहली मर्तबा दराजी उम्र की नीयत से’ दूसरी मर्तबा कुशादगी रिज्क की नियत से तीसरी मर्तबा दफअ अमराज़ वा बलायात की नीयत से जब तीन मर्तबा सूरह यासीन पढ़ें।
सालात फातमातू ज़ोहरा रजी अल्लाह ताला अनहुमा: –हजरत शेख अबू अल कासिम सफा से मुनकुल है के एक रोज मैंने खातुने जन्नत फातिमा तू जहरा रजी अल्लाह तला अन्हुमा को ख्वाब में देखा बाद सलाम के मैंने अर्ज किया खातूने जन्नत आप किस चीज को ज्यादा दोस्त रखती हैं के रूह मुबारक को बख्शू फरमाया सैयदा कोनैन ने के दोस्त रखती हूं शाबान के महीने में आठ रकात एक सलाम चार काअदा के साथ और हर रकात में बाद अल्हम्द के सूरह इखलास 11 बार पढ़े ।
जो कोई यह नमाज माहे शाबान में पढ़े और मुझे इसका सवाब बख्शे तो अय अबू अल कासिम मैं हरगिज़ कदम ना रखूंगी जन्नत में जब तक के इस की शफाअत ना कराऊं। अक्सर सोलहा यह नमाज पाबंदियो शाबान को अदा फरमाते हैं।
मुबारक दीन:–माहे शाबान उलमोवाज्जम की 15वीं तारीख को रोजा रखने की अहादीस में सख्त ताकीद की गई है दुआ है के अल्लाह ताला हम तमाम मुसलमान को नेक तौफीक अता फरमाए (आमीन)
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Shab E Barat Ki Namaz
हजरत अबू बकर सिद्दीक रजी अल्लाहो तआला अन्ह से रिवायत है के रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया के उठो ऐ लोगों! नस्फ शब माहे शाबान को 15वीं रात शाबान की निहायत बुजुर्ग है और जो इबादत इस रात में करें इसका सवाब बहुत पावे।
चुनांचा रसूल अकरम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम इरशाद फरमाते हैं के बुजुर्ग जानो इस शब बारात को के वह 15वीं शब शाबान की है के उतरते हैं इसमें फरिश्ते रहमत के’ नाजिल होती है रहमते इलाही इन लोगों पर जो इबादत करते हैं इस रात को वह ऐसी रात है के जो इबादत करता है इस रात में अल्लाह ताला इसके सगिरह वा कबीरह गुना बक्श देता है वह शख्स पाक हो जाता है तमाम गुनाहों से।
फरमाया रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने के जो जिंदा रहे 15वीं शब माहे शाबान को तो जिंदा रखना है अल्लाह ताला इस को कयामत तक यानी मौत के बाद भी सवाब इसको इबादत का हर रोज मिला करता है इसके आमाल में लिखा जाता रहेगा फरमाया रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने के अल्लाह ताला 15वीं शाबान को तमाम आबिदों और सालहों और सिद्दीको और नेको और बुरों को बख्सता है मगर जादूगरों’नजूमियों ’बखिलों और मां बाप को तकलीफ देने वालों ’शराब खोरों और ज़ानियो’को नहीं बख्स्ता । हां जो लोग तौबा करलें वह बख्से जायेंगे।
और वारिद है के खुदा ताला फरमाता है 15वीं रात शाबान को के है कोई बख्शीश चाहने वाला मुझ से के मैं बख्श दूं है कोई जो आफियत चाहे मुझ से के मैं इसको सेहत दूं और है कोई फकीर जो गिना चाहे कि मैं इसको गनी कर दूं
इरशाद फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने के जिब्रील अलैहिस्सलाम मेरे पास आए और कहा या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलैही वसल्लम उठिए और नमाज पढ़िए और दुआ मांगिए अपनी उम्मत के लिए इस रात को मगर मुशरिक, जादूगर, मुंज्जिम , बखिल और शराबी ,सूदखोर ,और ज़ानी के लिए बख्शीश ना मांगिए क्योंकि अल्लाह ताला इन पर अजाब करने वाला है’ हां मगर जो तौबा करे खुशखबरी है वास्ते इस आदमी के अमल करे नेक 15 में शब शाबान में
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फजाइले माहे शाबान
दुनिया इस्लाम में साल का हर महीना किसी न किसी खूसूसियत का हामिल है हर महीना अपने ख्वास के लिहाज से मुसलमानो के नजदीक एक खास जाज़बीअत रखता है शाबान उल मुवजजम के महीने की हादिसों में बड़ी फजीलत आई है।
हदीस शरीफ़:– आका करीम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने फ़रमाया के शाबान मेरा महीना है और इसकी फजीलत तमाम महीना पर ऐसी है जैसी मेरी फजीलत तमाम मखलूक पर है
दूसरी हदीस में आया है की शाबान उल मोवाज्जम की बुजुर्गी बाकी महीनों पर ऐसी है जैसे तमाम अंबिया इकराम पर मुझे फजीलत दी गई है मालूम हुआ कि जिस तरह रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम सब पैगंबरों से अफजल है इसी तरह आपका महीना भी सब महीनों से अफजल है
शाबान में अल्लाह ताला अपने बंदों को खैरो बरकत कसरत से इनायत फरमाता है बंदों को भी लाजिम है के कसरत से इबादत करें
बीबी आयशा रजि अल्लाह ताला अन्हा से रिवायत है के रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम शाबान उल मोअज्जम का पूरा महीना रोजा रखा करते थे
माह शाबान उल मुअज्जम एक उम्दा और मुबारक महीना है जिसको हबीब रब्बुल इज्जत ने महबूब रखा है यह वह महीना है कि इसमें गुनाहों की माफी होती है और जो अपने अंदर कामिल बुजुर्गी रखता है
साल भर के उमुर की तक्सीम:–हक सुभान अल्लाह ताला इरशाद फरमाता है के हमारे हुक्म से इस रात में हर हिक्मत वाला काम बांट दिया जाता है ( सूरह दुखान ’ पारा 25)
यानी शबे बरात में जुमला अहकाम रिज्क ’आजाल और तमाम साल के हवादिस तक्सीम कर दिए जाते हैं और हर काम के फरिश्तों को उनकी तअमिल पर मोतय्यन कर दिया जाता है हुजूर अकदस सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने हजरत आयशा सिद्दीका रज़ी अल्लाहु ताला अन्हुमा से फरमाया तुम जानती हो इस रात में क्या होता है।
इन्होंने अर्ज किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलैही वसल्लम क्या होता है फरमाया इस रात में साल का हर पैदा होने वाला और हर मरने वाला आदमी लिखा जाता है और लोगों के आमाल इन के रब की बारगाह में पेश होते हैं और उनके रिज्क उतारे जाते हैं
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रहमत इलाही का नजूल:–रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया के अल्लाह अज्जावाजल
शब बरात मैं मेरी उम्मत पर बनी कल्ब की बकरियों के बालों के बराबर रहमतें नाजिल फरमाता है ( तफसीर कबीर) ( बनी कल्ब अरब में एक कबीला था’ इन के यहां बकरियां कसीर तादाद में थीं)
मुसलमानो की मगफिरत:–सरवरे आलम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने फरमाया के हक़ ताला इस रात में तमाम मुसलमानो की मगफिरत फरमा देता है’ सिवाय मुशरिक ’काफिर ’जादूगर’ नजूमी’ ज़ानी ’शराबी’ कीना परवर’ सुधखोर ’मां बाप की नाफरमानी करने वाले और रिश्ता कताअ करने वाले के।
इबादत की फजीलत:– प्यारे आका करीम सल्लल्लाहो ताला अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जो शक्स इस रात में सौर रकात नफिल पढ़ेगा रब तबारक ताला इसके पास 100 फरिश्ते भेजेगा 30 जन्नत की खुशखबरी सुनाएंगे 30 दोजख के अजाब से मामून रखेंगे ’30 दुनिया की आफतें दूर करेंगे’ 10 शैतान के मकर से बचाएंगे ( तफसीर कबीर)
हजरत अली रज़ी अल्लाह तला अन्ह से मारवी है के हुजूर अकदस सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने फरमाया शबे बारात आए तो इस रात में कायाम करो यानी नमाज पढ़ो और दिन में रोज रखो (इब्ने मजा)
अमराज़ वा वबा से निजात और रिज्क में वुसअत:– नबी अकरम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने फरमाया के अल्लाह ताला इस शब मैं गुरुबे आफताब के वक्त आसमान से दुनिया की तरफ नजूल इजलाल करता है और इरशाद फरमाता है के क्या है कोई मगफिरत चाहने वाला कि मैं इस की मगफिरत करूं’ क्या है कोई रोज़ी मांगने वाला के मैं इसको रोजी दूं ’क्या है कोई गिरफ्तारे है बला के मैं इसे आफियत दूं ,क्या है कोई और ऐसा , इस किस्म की निदाएं सुबह तक होती रहती है ( इब्ने मजाह)
आमाले सलहा:–इस मुबारक रात में गुस्ल करना हसब अलमकदूर अच्छे कपड़े पहनना वास्ते इबादत के सुरमा लगाना’ मिस्वाक करना’ इत्र लगाना कबरों की जियारत करना’ फातिहा दिलाना खैरात करना’ मुर्दों की मगफिरत की दुआ करना’ बीमार की इयादत करना’ तहज्जुद की नमाज पढ़ना ’नफल नमाजे ज्यादा पढ़ना ’दरूदो सलाम की कसरत करना’ खुसुसन सूरह यासीन शरीफ की तिलावत करना’ अमल साल है में जाति करना इबादत में सुस्ती ना करना आमाले सालेह में ज्यादती करना ’इबादत में सुस्ती ना करना और इस रोज़ क़रीब गुरूबे आफताब के 40 (“ला-हौला वला-कुव्वता इल्ला बिल्लाही–ल–अलियिल अज़ीम” )पढ़ना साल तमाम की बेहतरी का जामीन है ।
आमाले ख़बीसा:– ऐसी मुबारक व मुकद्दस रात की कद्र ना करना इबादत में सुस्ती वा काहिली करना’ सिनेमा बैनी ’ चाय खानों में रात गुजर देना’आतिशबाजी खुद जलाना या बच्चों को इस की आदत डालना ’ रात लहू वा लाअब और गब शब में गुज़ार देना’ बदकारी करना’लोगों को सताना ’ गिबत करना
और चुगली में वक्त जाये करना ’रात तमाम सोते पढ़े रहना वगैरा यह तमाम बातें खुदा और इसके रसूल की नाराजगी के हैं अल्लाह ताला से दुआ है कि हम तमाम मुसलमानो को आमाले सालेह की तौफीक अता फरमाए (आमीन)