< Har Nazar Kamp Uthegi Mehshar Ke Din Lyrics| हर नज़र काँप उट्ठेगी महशर के दिन Naat Lyrics
Har Nazar Kamp Uthegi Mehshar Ke Din - Naat Lyrics

Har Nazar Kamp Uthegi Mehshar Ke Din lyrics| हर नज़र काँप उट्ठेगी महशर के दिन Naat Lyrics

Har Nazar Kamp Uthegi Mehshar Ke Din Naat Lyrics In Hindi

हर नज़र काँप उठेगी महशर के दिन
खौफ से हर कलेजा दहल जाएगा
पर ये नाज़ उनके बन्दे का देखेंगे सब
थम कर उनका दामन मचल जाएगा

मौज कतरा के हम से चली जाएगी
रुख़ मुख़ालिफ़ हवा का बदल जाएगा
जब इशारा करेंगे मेरे मुस्तफ़ा
अपना बेड़ा भवर से निकल जाएगा

यू तो जिता हू हुक्मे खुदा से मगर
मेरे दिल की है उनको यक़ीनन खबर
हासिले ज़िन्दगी होगा वो दिन मेरा
उनके कदमों पर जब दम निकल जाएगा

रब्बे-सलीम वो फरमाने वाले मिले
क्यों सताते हो ऐ दिल तुझे वस्वसे
पुल से गुज़रेंगे हम वज्द करते हुए
कौन कहता है पाँव फिसल जाएगा

अख़्तरे-ख़स्ता क्यों इतना बेचैन है
तेरा आक़ा शहनशाहे कौनैन है
लो लगा लो तो सही शाहे लौलाक से
गम मुस्सरत के साँचे में ढल जाएगा

Har Nazar Kamp Uthegi Mehshar Ke Din Naat Lyrics In English

Har nazar kamp uthegi mehshar ke din
Khauf se har kaleja dahal jayega
Par ye naaz unke bande ka dekhenge sab
Tham kar unka daman machal jayega

Mauj katra ke humse chali jayegi
Rukh mukhalif hawa ka badal jayega
Jab Ishara karenge mere mustafa
apna beda bhanvar se nikal jayega

Yu to jita ho hukme Khuda se magar
Mere dil ki hai unko yakinan khabar
Hasil-E-Zindagi hoga wo din mera
Unke kadmo pe jab dam nikal jayega

Rabbe-salim wo farmane wale mile
Kyun satate hain ai dil tuje waswase
Pul se guzarenge hum wajd karte hue
Kaun kehata hai paon fisal jayega

Akhtare-khasta kyun itna bechain hai
Tera aaqa shahan-shah-e-konain hai
Lo laga lo to sahi shahe lolak se
Gham musarrat ke sanche mein dhal jayega

About the Naat

  • Title: Har Nazar Kanp Uthegi Mehshar Ke Din
  • Poet: Akhtar Raza Khan Allahi Rahma
  • Singer: Owais Raja Qadri
  • Language: Urdu/Hindi
  • Genre: Naat (a poetic form in praise of the Prophet Muhammad)

हर नज़र काँप उठेगी महशर के दिन
खौफ से हर कलेजा दहल जाएगा
पर ये नाज़ उनके बन्दे का देखेंगे सब
थम कर उनका दामन मचल जाएगा

मौज कतरा के हम से चली जाएगी
रुख़ मुख़ालिफ़ हवा का बदल जाएगा
जब इशारा करेंगे मेरे मुस्तफ़ा
अपना बेड़ा भवर से निकल जाएगा

यू तो जिता हू हुक्मे खुदा से मगर
मेरे दिल की है उनको यक़ीनन खबर
हासिले ज़िन्दगी होगा वो दिन मेरा
उनके कदमों पर जब दम निकल जाएगा

रब्बे-सलीम वो फरमाने वाले मिले
क्यों सताते हो ऐ दिल तुझे वस्वसे
पुल से गुज़रेंगे हम वज्द करते हुए
कौन कहता है पाँव फिसल जाएगा

अख़्तरे-ख़स्ता क्यों इतना बेचैन है
तेरा आक़ा शहनशाहे कौनैन है
लो लगा लो तो सही शाहे लौलाक से
गम मुस्सरत के साँचे में ढल जाएगा

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